Excellent Shiksha Class-10th,जैव प्रक्रम Class 10th Science Chapter-06 जैव प्रक्रम part – 01

Class 10th Science Chapter-06 जैव प्रक्रम part – 01


Class 10th Science Chapter-06 जैव प्रक्रम part – 01

Class 10th Science Chapter-06 जैव प्रक्रम part – 01 जैव प्रक्रम का ही एक अहम् भाग है | अगर आप इस इकाई अथवा पाठ को अच्छे से अध्ययन करना चाहते है तो हम आपसे यही अनुरोध करते है कि आप इस बहुत बड़ी इकाई को छोटे छोटे part में पढ़े | यही वजह है कि हम आपको यहाँ पर part वाइज नोट्स Provide कर रहे है | इस part में जो भी महत्वपूर्ण हैडिंग है उन्हें जरूर याद करे | क्यूंकि ये ही आपको अच्छे मार्क्स प्राप्त करने में मदद करेंगी |

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What We Learn In This Part

इस भाग में हम बोर्ड में पूछे गये कम से कम 3 से 5 मार्क्स का अध्ययन करेंगे | अत: आप इन्हें ध्यान से पढ़े | अगर आप कुछ समस्या महसूस करते है तो आप हमे सम्पर्क कर सकते हो और आप Ask Question पर क्लिक करके प्रश्न भी पूछ सतके हो | हम आपसे ये गुजारिश करते है कि आप इन महत्वपूर्ण हैडिंग को अवस्य याद करेंगे  | क्यूंकि ये वो सभी हैडिंग है जो पिछले बहुत सालो के पेपर में रिपीट हुई है | अगर आप इन्हें याद करके एग्जाम में बैठते है तो आप 90 % से अधिक अंक हासिल कर सकते है |

Class 10th Science Chapter-06 जैव प्रक्रम part – 01 में महत्वपूर्ण  Headings निम्नलिखित है | इन्हें अच्छे से याद करे | ये आपको अच्छे अंक दिलाने में मदद करेगी : 

  1. जैव प्रक्रम की परिभाषा और तंत्र
  2. पोषण और इसके प्रकार
  3. स्वपोषी पोषण और प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया
  4. हरितलवक अथवा क्लोरोप्लास्ट
  5. विषमपोषी पोषण
Class 10th Science Chapter-06 जैव प्रक्रम part – 01

जैव प्रक्रम की परिभाषा और तंत्र

जैव प्रक्रम : जीवो के शरीर का रखरखाव एवं मरम्मत का कार्य निरंतर चलता रहता है, चाहे हम सो रहे हो या कोई भी अन्य कार्य कर रहे हो । इसे हम अनुरक्षण कहते हैं।

वे सभी प्रक्रम जो सम्मिलित रूप से अनुरक्षण का कार्य करते हैं , जैव प्रक्रम कहलाते हैं। जैसे – पोषण , परिवहन , श्वसन , उत्सर्जन आदि ।

जीव की शारीरिक वृद्धि एवं शरीर के अनुरक्षण के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है । जिसके लिए उसे बाहर से कच्ची सामग्री लेनी पड़ती है , जिसे हम खाद्य पदार्थ कहते हैं। खाद्य पदार्थ ग्रहण करके ऊर्जा प्राप्त करना पोषण कहलाता है।

जब भोजन शरीर के अंदर चला जाता है तो इससे ऊर्जा प्राप्त करने के लिए विघटन या निर्माण की आवश्यकता होती है। इसके लिए शरीर के अंदर रासायनिक क्रियाओ की एक श्रृंखला होती है। जिसे उपापचय या उपचयन-अपचयन अभिक्रिया कहते हैं।

पोषण हेतु ली गई कच्ची खाद्य सामग्री का विघटन करने के लिए वातावरण से ऑक्सीजन ली जाती है जो खाद्य पदार्थ का कोशिका में ऑक्सीकरण करके ऊर्जा उत्पन्न करती है तथा बनने वाली कार्बन डाइऑक्साइड को पुन: शरीर से बाहर निकाल देता है, यह प्रक्रम श्वसन कहलाता है। भोजन के ऑक्सीकरण एवं ऊर्जा प्राप्ति हेतु श्वसन आवश्यक होता है।

भोजन के ऑक्सीकरण के ऊर्जा उत्पादन की प्रक्रिया में कुछ ऐसे पदार्थ भी बनते हैं । जिनका शरीर से बाहर निकलना आवश्यक होता है। इन अपशिष्ट पदार्थ को शरीर से बाहर निकालने के लिए उत्सर्जन तंत्र की आवश्यकता होती है।

शरीर में वहन तंत्र : बहुकोशिकीय जीव में विभिन्न कार्यों को करने के लिए भिन्न-भिन्न अंग होते हैं। जैसे – भोजन एवम् ऑक्सीजन का अंत: ग्रहण कुछ विशिष्ट अंगों द्वारा होता है, परंतु शरीर के सभी भागों को इसकी आवश्यकता होती है। अतः एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए वहन तंत्र की आवश्यकता होती है ।

पोषण और इसके प्रकार

पोषण : जीव की शारीरिक वृद्धि एवं शरीर के अनुरक्षण के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है । जिसके लिए उसे बाहर से कच्ची सामग्री लेनी पड़ती है , जिसे हम खाद्य पदार्थ कहते हैं। खाद्य पदार्थ ग्रहण करके ऊर्जा प्राप्त करना पोषण कहलाता है।

यह सामान्यत: दो प्रकार का होता है :

  1. स्वपोषी पोषण
  2. विषमपोषी पोषण

स्वपोषी पोषण और प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया

स्वपोषी पोषण : इस पोषण प्रक्रिया में जीव अपना भोजन स्वयम बनाते हैं। यह सामान्यतः प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के उपरांत भोजन बनाने में सक्षम होते हैं।

प्रकाश संश्लेषण : वह प्रक्रिया जिसमें कोई जीव भूमि से जल एवं वायु से कार्बन डाइऑक्साइड लेकर सूर्य के प्रकाश एवं पर्णहरित की उपस्थिति में अपना भोजन स्वयं बनाता है प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया कहलाती है। यह भोजन कार्बोहाइड्रेट होता है जिसे मंड या स्टार्च के रूप में संचित कर लिया जाता है| सामान्यत: यह क्रिया सभी हरे पौधों में होती है ।

प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में अभिक्रिया

प्रकाश संश्लेषण की क्रिया तीन पदों में होती है :

  1. क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा को ग्रहण करके उत्तेजित होना
  2. प्रकाश ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरण एवं जल के अणुओं का हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन में अपघटन
  3. हाइड्रोजन द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन।

हरितलवक अथवा क्लोरोप्लास्ट

हरितलवक अथवा क्लोरोप्लास्ट : पत्ती की अनुप्रस्थ काट को जब सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखा जाता है, तो कोशिकाओं में हरे रंग के बिंदु दिखाई देते हैं जिन्हें हरितलवक अथवा क्लोरोप्लास्ट कहते हैं। इनमें क्लोरोफिल भरा होता है जो प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक होता है।

पत्ती की ऊपरी सतह पर एक मोमी क्यूटिकल परत होती है , जो पत्ती से जल की हानि को काम करती है , परंतु इसकी निचली सतह पर अनेक सूक्ष्म छिद्र होते हैं जो गैसों के आदान-प्रदान के लिए उपयोग में आते हैं,लेकिन इनसे जल की हानि भी होती है । अतः जब कार्बन डाइऑक्साइड की आवश्यकता नहीं हो, तब यह रंध्र बंद हो जाते हैं।  रंध्र का खुलना एवं बंद होना द्वार कोशिकाओं द्वारा संपन्न होता है । द्वारा कोशिकाओं में जब जल अंदर जाता है तो यह फूल जाती है और रंध्र खुल जाता है। इसी तरह जब द्वारा कोशिकाएं सिकुड़ती है तो रंध्र बंद हो जाता है।

हरितलवक अथवा क्लोरोप्लास्ट में रन्ध्र

विषमपोषी पोषण

विषमपोषी पोषण: अपना भोजन स्वयं नहीं बनाना तथा भोजन के लिए अन्य जीव या उसके द्वारा बनाए गए भोजन पर आश्रित रहना विषमपोषी पोषण कहलाता है। सभी जीव जंतु एवं कटक विषमपोषी होते हैं।

प्रत्येक जीव अपने पर्यावरण के अनुकूल भोजन पर निर्भर रहता है इसलिए इनकी पोषण विधि भिन्न-भिन्न हो सकती है। कुछ जीव भोज्य पदार्थ का विघटन शरीर से बाहर कर देते हैं और उसका अवशोषण करते हैं जैसे फफूंदी ईस्ट मशरूम आदि। और कुछ संपूर्ण भोजन पदार्थ का अंत: ग्रहण करते हैं और पाचन शरीर के अंदर करते हैं जैसे शाकाहारी मांसाहारी जंतु । कुछ ऐसे भी जीव हैं जो पौधों एवं जंतुओं पर परजीवी की तरह रहते हैं जैसे अमरबेल , जो , लीच और जोक आदि।

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