Class 10th Science Chapter-09 अनुवांशिकता एवं जैव विकास part – 01 अनुवांशिकता एवं जैव विकास का ही एक अहम् भाग है | अगर आप इस इकाई अथवा पाठ को अच्छे से अध्ययन करना चाहते है तो हम आपसे यही अनुरोध करते है कि आप इस बहुत बड़ी इकाई को छोटे छोटे part में पढ़े | यही वजह है कि हम आपको यहाँ पर part वाइज नोट्स Provide कर रहे है | इस part में जो भी महत्वपूर्ण हैडिंग है उन्हें जरूर याद करे | क्यूंकि ये ही आपको अच्छे मार्क्स प्राप्त करने में मदद करेंगी |
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What We Learn In This Part
इस भाग में हम बोर्ड में पूछे गये कम से कम 3 से 5 मार्क्स का अध्ययन करेंगे | अत: आप इन्हें ध्यान से पढ़े | अगर आप कुछ समस्या महसूस करते है तो आप हमे सम्पर्क कर सकते हो और आप Ask Question पर क्लिक करके प्रश्न भी पूछ सतके हो | हम आपसे ये गुजारिश करते है कि आप इन महत्वपूर्ण हैडिंग को अवस्य याद करेंगे | क्यूंकि ये वो सभी हैडिंग है जो पिछले बहुत सालो के पेपर में रिपीट हुई है | अगर आप इन्हें याद करके एग्जाम में बैठते है तो आप 90 % से अधिक अंक हासिल कर सकते है |
Class 10th Science Chapter-09 अनुवांशिकता एवं जैव विकास part – 01 में महत्वपूर्ण Headings निम्नलिखित है | इन्हें अच्छे से याद करे | ये आपको अच्छे अंक दिलाने में मदद करेगी:
- विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी स्पीशीज के अस्तित्व पर प्रभाव
- अनुवांशिकता और वंशागत लक्षण
- विपर्यासी लक्षण या युग्म विकल्पी लक्षण
- प्रभावी और अप्रभावी लक्षण
विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी स्पीशीज के अस्तित्व पर प्रभाव
पीढ़ी दर पीढ़ी विभिन्नताएं : संतति पीढ़ी को जनक पीढ़ी से एक मूलभूत शारीरिक अभिकल्प एवं कुछ विभिन्नताएं प्राप्त होती हैं। फिर जब उनकी संतति दूसरी पीढ़ी बनेगी तो उसमें कुछ विभिन्नताएं प्रथम पीढ़ी से प्राप्त एवं कुछ नयी होगी। इस प्रकार पीढ़ी दर पीढ़ी विभिन्नताएं बढ़ती जाती हैं।
विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी स्पीशीज के अस्तित्व पर प्रभाव: विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी स्पीशीज का अस्तित्व बढ़ जाता है क्योंकि विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से संतति पीढ़ी के जीवो में कुछ नए लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।
जो उन जीवों को अपने पर्यावरण के अधिक अनुकूल बनाते हैं। इस प्रकार समष्टि में इस स्पीशीज का अस्तित्व बढ़ जाता है। जैसे जीवाणुओं में विभिन्नता से कुछ ऐसे जीवाणु उत्पन्न हो जाते हैं जिनमें उष्णता सहन करने की क्षमता पाई जाती है। ग्रीष्म के मौसम में यह जीवाणु आसानी से जीवित रह जाते हैं और अन्य सभी गर्मी से मर जाते हैं।
अनुवांशिकता और वंशागत लक्षण
अनुवांशिकता : जनक से संतति में विभिन्न लक्षणों की वंशागति को आनुवंशिकता कहते हैं। यह लक्षण पूर्ण विश्वसनीयता के साथ वंशागत होते हैं।
वंशागत लक्षण : किसी जीव के सभी लक्षण वंशागत नहीं होते हैं। ऐसे लक्षण जो जनक पीढ़ी से संतति में चले जाते हैं, उन्हें वंशागत लक्षण कहते हैं।
लक्षणों की वंशागति के नियम और मेंडल का योगदान: मेंडल का पूरा नाम ग्रेगर जॉन मेंडल था। इनका जन्म ऑस्ट्रिया के छोटे से गांव में गरीब किसान परिवार में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा एक गिरजाघर में हुई और बाद में विज्ञान एवं गणित का अध्ययन करने हेतु वियना विश्वविद्यालय गए। अध्यापन की परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने पर यह अपने चर्च में वापस आ गए एवं मटर के पौधे पर वंशागति संबंधी प्रयोग किए और वंशागति के नियम बनाएं।
विपर्यासी लक्षण या युग्म विकल्पी लक्षण
विपर्यासी लक्षण या युग्म विकल्पी लक्षण: माता एवं पिता दोनों ही समान मात्रा में अनुवांशिक पदार्थ को संतति में स्थानांतरित करते हैं। इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक लक्षण माता एवं पिता के DNA से प्रभावित हो सकते है। अतः संतति में प्रत्येक लक्षण के लिए दो विकल्प होंगे जिन्हें विपर्यासी लक्षण या युग्म विकल्पी लक्षण कहते हैं।
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प्रभावी और अप्रभावी लक्षण
प्रभावी और अप्रभावी लक्षण : जब युग्म विकल्प पौधों में क्रॉस करवाया जाता है तो जो लक्षण प्रथम पीढ़ी में प्रकट हो जाते हैं उन्हें प्रभावित लक्षण कहते हैं। और जो लक्षण प्रकट नहीं होते उन्हें अप्रभावी लक्षण कहते हैं।