Excellent Shiksha Class-10th,जैव प्रक्रम Class 10th Science Chapter-06 जैव प्रक्रम part – 03

Class 10th Science Chapter-06 जैव प्रक्रम part – 03


Class 10th Science Chapter-06 जैव प्रक्रम part – 03

Class 10th Science Chapter-06 जैव प्रक्रम part – 03 जैव प्रक्रम का ही एक अहम् भाग है | अगर आप इस इकाई अथवा पाठ को अच्छे से अध्ययन करना चाहते है तो हम आपसे यही अनुरोध करते है कि आप इस बहुत बड़ी इकाई को छोटे छोटे part में पढ़े | यही वजह है कि हम आपको यहाँ पर part वाइज नोट्स Provide कर रहे है | इस part में जो भी महत्वपूर्ण हैडिंग है उन्हें जरूर याद करे | क्यूंकि ये ही आपको अच्छे मार्क्स प्राप्त करने में मदद करेंगी |

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What We Learn In This Part

इस भाग में हम बोर्ड में पूछे गये कम से कम 3 से 5 मार्क्स का अध्ययन करेंगे | अत: आप इन्हें ध्यान से पढ़े | अगर आप कुछ समस्या महसूस करते है तो आप हमे सम्पर्क कर सकते हो और आप Ask Question पर क्लिक करके प्रश्न भी पूछ सतके हो | हम आपसे ये गुजारिश करते है कि आप इन महत्वपूर्ण हैडिंग को अवस्य याद करेंगे  | क्यूंकि ये वो सभी हैडिंग है जो पिछले बहुत सालो के पेपर में रिपीट हुई है | अगर आप इन्हें याद करके एग्जाम में बैठते है तो आप 90 % से अधिक अंक हासिल कर सकते है |

Class 10th Science Chapter-06 जैव प्रक्रम part – 03 में महत्वपूर्ण  Headings निम्नलिखित है | इन्हें अच्छे से याद करे | ये आपको अच्छे अंक दिलाने में मदद करेगी : 

  1. मानव में वहन तंत्र
  2. हमारा हृदय और इसके भाग
  3. धामनिया , शिराएं और कोशिकाएं
Class 10th Science Chapter-06 जैव प्रक्रम part – 03

मानव में वहन तंत्र

मानव में वहन तंत्र : रुधिर भोजन, ऑक्सीजन एवं अपशिष्ट पदार्थ का हमारे शरीर में वहन करता है । रुधिर संयोजी ऊतक है । रुधिर में लगभग 55 %  द्रव प्लाज्मा होता है शेष रुधिर कणिकाएं एवं अन्य पदार्थ उपस्थित होते हैं । रुधिर को पंप करने के लिए एक हृदय तथा नलिकाओं का एक परिपथ होता है।

हमारा हृदय और इसके भाग

हमारा हृदय : हृदय एक पेशीय अंग है, जो चार कोष्ठो में बंटा होता है। ऊपर के दो कोष्ठ आलिंद तथा नीचे के दो कोष्ठ निलय कहलाते हैं।

हृदय के बाएं भाग में फेफड़ों से शुद्ध रुधिर आता है तथा शरीर के विभिन्न भागों में चला जाता है जबकि दाएं भाग में शरीर से अशुद्ध रुधिर आता है तथा शुद्ध होने के लिए फेफड़ों में चला जाता है। इस प्रकार हमारे हृदय में शुद्ध एवं अशुद्ध रुधिर कभी नहीं मिलते ।

आलिंद की अपेक्षा निलय की पेशीय भित्ति मोटी होती है क्योंकि निलय को पूरे शरीर में रुधिर प्रवाहित करना होता है। आलिंद एवं निलय  के मध्य कपाट होते हैं। यह कपाट (वाल्व) रुधिर को उल्टी दिशा में प्रवाहित होने से रोकते हैं।

हमारा हृदय और इसके भाग

हमारे हृदय का बायां भाग ऑक्सिजनित रुधिर को एवं दांया भाग विऑक्सिजनित रुधिर को धारण करता है, इससे यह लाभ होता है कि शरीर को उच्च क्षमतापूर्वक ऑक्सीजन की पूर्ति होती रहती है।

नोट : उभयचर एवं सरीसर्प में हृदय तीन कोष्ठिय होता है। यह जंतु कुछ सीमा तक  ऑक्सिजनित एवं भी विऑक्सिजनित रुधिर का मिलन सहन कर लेते हैं।

मछली के हृदय में केवल दो कोष्ठ एक आलिंद एवं एक निलय होते हैं। यहां से रुधिर कलोम में जाकर ऑक्सीकृत होता हैं और सीधे शरीर को चला जाता है । इस प्रकार मछलियों में एक चक्र में रुधिर एक बार ही हृदय में आता हैं जबकि अन्य केशेरूकी जंतुओं में यह प्रत्येक चक्र में दो बार हृदय में आता हैं, इसलिए इसे दोहरा परिसंचरण तंत्र भी कहते हैं।

धामनिया , शिराएं और कोशिकाएं

रुधिर को शरीर में वितरित करने एवं वापस हृदय में लाने के लिए तीन प्रकार की नलिकाएं होती हैं : 

1: धामनिया: रुधिर को हृदय से शरीर के विभिन्न अंगों तक ले जाने का कार्य धामनिया करती हैं ।  इनकी भित्ति मोटी एवं लचीली होती है , क्योंकि इनमें रुधिर दाब के साथ बहता है ।

2: शिराएं : शरीर के विभिन्न भागों से रुधिर को एकत्र करके हृदय में लाने का कार्य शिराएं करती हैं । इनकी भित्ति पतली होती है और इनमें जगह-जगह पर कपाट लगे होते हैं। जो रुधिर को केवल एक ही दिशा में जाने का कार्य करते हैं।

3: कोशिकाएं : अंग या ऊतक तक पहुंच कर धमनी अनेक छोटी एवं पतली वाहिकाओं में बंट जाती हैं । जो प्रत्येक कोशिका तक रुधिर पहुंचती है, इन्हें कोशिकाएं कहते हैं । रुधिर एवं कोशिकाओं के मध्य पदार्थ का विनिमय कोशिका की पतली भित्ति से होता है और यह पुनः आपस में जुड़कर शिराएं बनाती हैं |

धामनिया शिराएं और कोशिकाएं

लसीका और प्लेटलेट्स द्वारा अनुरक्षण

प्लेटलेट्स द्वारा अनुरक्षण: जब कभी हमें चोट लग जाती है एवं रक्त बहने लगता है तो रक्तस्राव को रोकने के लिए रक्त स्राव वाले स्थान पर प्लेटलेट्स जमा होकर रक्त का थक्का बनाते हैं जिससे रक्त बहने से रुक जाता है। यह आवश्यक है कि रक्तस्राव से रुधिर की हानि होती है परंतु इसके साथ-साथ रुधिर दाब में भी कमी हो जाती है जिससे पंपिंग प्रणाली की दक्षता में भी कमी आती है।

लसीका : कोशिकाओं की पतली भित्ति में से कुछ प्लाज्मा प्रोटीन एवं रुधिर कोशिकाएं बाहर निकलकर ऊतक के अंतर कोशिकीय स्थान पर में आ जाती हैं, इस तरल को लसीका कहते हैं।  यह रंगहीन होता है एवं वहां से लसीका कोशिकाओं से होता हुआ लसीका वाहिनी में पहुंच जाता है जो रुधिर शिराओ में खुलती है। क्षुद्रान्त द्वारा अवशोषित वसा का वहन लसीका द्वारा होता है।

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