Excellent Shiksha Class-10th,जैव प्रक्रम Class 10th Science Chapter-06 जैव प्रक्रम part – 04

Class 10th Science Chapter-06 जैव प्रक्रम part – 04


Class 10th Science Chapter-06 जैव प्रक्रम part – 04

Class 10th Science Chapter-06 जैव प्रक्रम part – 04 जैव प्रक्रम का ही एक अहम् भाग है | अगर आप इस इकाई अथवा पाठ को अच्छे से अध्ययन करना चाहते है तो हम आपसे यही अनुरोध करते है कि आप इस बहुत बड़ी इकाई को छोटे छोटे part में पढ़े | यही वजह है कि हम आपको यहाँ पर part वाइज नोट्स Provide कर रहे है | इस part में जो भी महत्वपूर्ण हैडिंग है उन्हें जरूर याद करे | क्यूंकि ये ही आपको अच्छे मार्क्स प्राप्त करने में मदद करेंगी |

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What We Learn In This Part

इस भाग में हम बोर्ड में पूछे गये कम से कम 3 से 5 मार्क्स का अध्ययन करेंगे | अत: आप इन्हें ध्यान से पढ़े | अगर आप कुछ समस्या महसूस करते है तो आप हमे सम्पर्क कर सकते हो और आप Ask Question पर क्लिक करके प्रश्न भी पूछ सतके हो | हम आपसे ये गुजारिश करते है कि आप इन महत्वपूर्ण हैडिंग को अवस्य याद करेंगे  | क्यूंकि ये वो सभी हैडिंग है जो पिछले बहुत सालो के पेपर में रिपीट हुई है | अगर आप इन्हें याद करके एग्जाम में बैठते है तो आप 90 % से अधिक अंक हासिल कर सकते है |

Class 10th Science Chapter-06 जैव प्रक्रम part – 04 में महत्वपूर्ण  Headings निम्नलिखित है | इन्हें अच्छे से याद करे | ये आपको अच्छे अंक दिलाने में मदद करेगी : 

  1. पादपो में परिवहन
  2. जाइलम और फ्लोइम ऊतक
  3. उत्सर्जन तंत्र
  4. मानव में उत्सर्जन तंत्र
  5. वृक्क की इकाई वृक्क – अणु या नेफ्रॉन
  6. पादपो में उत्सर्जन
Class 10th Science Chapter-06 जैव प्रक्रम part – 04

पादपो में परिवहन

पादपो में परिवहन : पादप जमीन से जल , नाइट्रोजन,  फास्फोरस एवं अन्य खनिज लवण प्राप्त करते हैं जिनका अवशोषण मृदा के मध्य स्थित मूल रोमा द्वारा किया जाता है । इन्हे पत्तियो तक पहुंचाने तथा पत्तियों से भोजन को जड़ों तक पहुंचाने के लिए परिवहन प्रणाली की आवश्यकता होती है।

इसके लिए पौधों में दो प्रकार के उत्तक पाए जाते हैं:

  1. जाइलम ऊतक जो मृदा से जल एवं खनिज लवणों का वहन करते है ।
  2. फ्लोइम ऊतक जो पत्तियों से बनाए गए भोजन को अन्य भागों तक पहुंचाते हैं।

जाइलम और फ्लोइम ऊतक

पादपो में जल का परिवहन: जाइलम ऊतक में जड़ तना एवं पत्तियों की वाहिकाएं एवं वाहिनिकाएं आपस में जुड़कर जल संवहन वाहिकाओं का एक सतत जाल बनाती है। मूलरोम की कोशिकाएं मृदा के संपर्क में है और जड़ एवं मृदा के मध्य आएं सांद्रता में एक अंतर होता है। अतः परासरण दाब प्रवणता के कारण मृदा से जल जड़ में प्रवेश करता है और जल के एक स्तंभ का निर्माण करते हैं, जो लगातार ऊपर धकेला जाता है इसे मूलदाब कहते हैं। लेकिन अकेला मूलदाब अधिक ऊंचे वृक्षों में ऊपर तक जल पहुंचाने में असमर्थ रहता है इसलिए इनमें अनेकों मूलदाब पाए जाते हैं।

पत्तियों से जब वाष्पोत्सर्जन होता है तो जल की हानि होती है इसकी पूर्ति के लिए कोशिकाएं जाइलम से जल खींचती हैं जिससे एक दाब उत्पन्न होता है यह दाब जाइलम वाहिकाओं में जल को ऊपर की ओर खींचता है। इस प्रकार वाष्पोत्सर्जन एवं मूलदाब दोनों मिलकर जाइलाम में जल को ऊपर की ओर वहन करते हैं । दिन के समय वाष्पोत्सर्जन रात्रि में मूलदाब अधिक प्रभावित रहता है।

पादपो में भोजन एवं दूसरे पदार्थ का स्थानांतरण : पत्तियां प्रकाश संश्लेषण से कार्बोहाइड्रेट , अमीनो अम्ल एवं अन्य पोषक पदार्थ बनती है, जो फ्लोएम ऊतक द्वारा जड़ के भंडारण स्थलों , बीजों एवं पौधे के वृद्धि वाले अंगों में ले जाए जाते हैं। इसके लिए फ्लोएम में चालनी नलिकाएं एवं सहायक कोशिकाएं होती है जो ऊपर मुखी और अधोमुखी दोनों दिशाओं में भोजन का वहन करती है।

उत्सर्जन तंत्र

उत्सर्जन तंत्र : शरीर में भोजन के उपापचय से अनेक रासायनिक पदार्थ बनते हैं । जिनमें से कुछ हमारे लिए हानिकारक होते हैं । इन हानिकारक अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने की क्रिया उत्सर्जन कहलाती है।

एक कोशिका जीव सामान्य विसरण क्रिया से इन पदार्थों को कोशिका से बाहर त्याग देते हैं परंतु बहुकोशिकीय जीवो में इसके लिए विशेष अंग पाए जाते हैं।

मानव में उत्सर्जन तंत्र

मानव में उत्सर्जन तंत्र : मानव उत्सर्जन तंत्र में कर भाग होते हैं: वृक्क ,मूत्र वाहिनी ,मूत्राशय एवं मूत्र मार्ग ।

मनुष्य में दो वृक्क उदर गुहा में रीड की हड्डी के दोनों और स्थित होते हैं। इनमें रुधिर को छानकर इनमें से अपशिष्ट पदार्थों को अलग किया जाता है। यह अपशिष्ट पदार्थ जल में विलय रहते हैं इसे मूत्र कहते हैं । प्रत्येक वृक्क में बनने वाला मूत्र अपनी – अपनी एक लंबी नली मूत्र वाहिनी में प्रवेश करता है , जो मूत्राशय तक जाती है । मूत्राशय एक थैली जैसी पेशीय संरचना होती है जिसमें मूत्र एकत्रित होता है। समय-समय पर मूत्र मार्ग द्वारा बाहर त्याग दिया जाता है।

मानव में उत्सर्जन तंत्र

वृक्क की इकाई वृक्क - अणु या नेफ्रॉन

वृक्क की इकाई वृक्क – अणु या नेफ्रॉन : मूत्र निर्माण की संरचना एवं क्रियात्मक इकाई वृक्क – अणु या नेफ्रॉन कहलाती है। प्रत्येक वृक्क – अणु का अगला सिरा प्याले जैसा होता है जिसे बोमन संपुट कहते हैं। वृक्क धमनी की एक शाखा इस बोमन संपुट में आती है और कोशिका गुच्छ या ग्लोमरूलस बनाती है।

ग्लोमरूलस की कोशिकाएं आपस में मिलकर वृक्कीय शिरा बनाती है। इन कोशिकाओं की भित्ति बहुत पतली होती है जिसमें से रुधिर में से छनकर , अपशिष्ट पदार्थ, जल , ग्लूकोस , अमीनो अम्ल, लवण आदि वृक्क- अणु के नलिकाकर भाग में आ जाते हैं । जहां इनमें से लाभदायक पदार्थ का पुनः अवशोषण हो जाता है और शेष बचा पदार्थ मूत्राशय में मूत्र के रूप में इकट्ठा हो जाता है। समय-समय पर मूत्र, मूत्र मार्ग द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।

वृक्क की इकाई वृक्क - अणु या नेफ्रॉन की सरंचना

पादपो में उत्सर्जन

पादपो में उत्सर्जन : पादपो में उत्सर्जन जंतुओं से भिन्न एवं सरल होता है। पौधों में श्वसन में निकली कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग होता है और जल वाष्पोत्सर्जन के माध्यम से बाहर निकलता हैं।

पत्तियों में पतझड़ से पहले अपशिष्ट उत्पाद संचित हो जाते हैं जो पतझड़ के साथ पौधे से अलग हो जाते हैं कुछ अपशिष्ट उत्पाद कोशिकीय रिक्तियों में एकत्र हो जाते हैं जैसे गोंन्द, रेजिन आदि ।

The Chapter End

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