Class 10th Science Chapter-08 जीव जनन कैसे करते हैं part – 01 जीव जनन कैसे करते हैं का ही एक अहम् भाग है | अगर आप इस इकाई अथवा पाठ को अच्छे से अध्ययन करना चाहते है तो हम आपसे यही अनुरोध करते है कि आप इस बहुत बड़ी इकाई को छोटे छोटे part में पढ़े | यही वजह है कि हम आपको यहाँ पर part वाइज नोट्स Provide कर रहे है | इस part में जो भी महत्वपूर्ण हैडिंग है उन्हें जरूर याद करे | क्यूंकि ये ही आपको अच्छे मार्क्स प्राप्त करने में मदद करेंगी |
Table of Contents
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What We Learn In This Part
इस भाग में हम बोर्ड में पूछे गये कम से कम 3 से 5 मार्क्स का अध्ययन करेंगे | अत: आप इन्हें ध्यान से पढ़े | अगर आप कुछ समस्या महसूस करते है तो आप हमे सम्पर्क कर सकते हो और आप Ask Question पर क्लिक करके प्रश्न भी पूछ सतके हो | हम आपसे ये गुजारिश करते है कि आप इन महत्वपूर्ण हैडिंग को अवस्य याद करेंगे | क्यूंकि ये वो सभी हैडिंग है जो पिछले बहुत सालो के पेपर में रिपीट हुई है | अगर आप इन्हें याद करके एग्जाम में बैठते है तो आप 90 % से अधिक अंक हासिल कर सकते है |
Class 10th Science Chapter-08 जीव जनन कैसे करते हैं part – 01 में महत्वपूर्ण Headings निम्नलिखित है | इन्हें अच्छे से याद करे | ये आपको अच्छे अंक दिलाने में मदद करेगी:
- जनन और DNA प्रतिकृति का प्रजनन में महत्व
- जीवो में विभिन्नता और DNA व RNA का पूर्ण रूप
- अलैंगिक जनन : विखंडन और खण्डन
- पुनरूद्भवन ( पुनर्जनन) और मुकुलन
जनन और DNA प्रतिकृति का प्रजनन में महत्व
जनन : अपनी जाति के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए प्रत्येक जीव अपने सामान संतति उत्पन्न करते हैं , यह प्रक्रिया जनन कहलाती है।
किसी जीव को जीवित रहने के लिए जनन करना आवश्यक नहीं होता परंतु यदि वह जीव जनन नहीं करे तो उसकी जाति का अस्तित्व ही खत्म हो जाता है।
DNA प्रतिकृति का प्रजनन में महत्व : DNA में अनुवांशिक गुणों के संदेश निहित रहती हैं जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाते हैं और बनने वाले जीव के अभिकल्प , आकर , आकृति, आदि का निर्धारण करते हैं। इसके लिए जनन कोशिका अपने DNA की प्रतिकृति तैयार करती है। यह प्रतिकृति अपने मूल DNA से जितनी अधिक समान होगी बनने वाली संतति भी अपने जनक से गुणों में उतनी ही अधिक समान होगी।
जीवो में विभिन्नता और DNA व RNA का पूर्ण रूप
जीवो में विभिन्नता : जीवो में विभिन्नताओं का उत्पन्न होना DNA प्रतिकृति पर निर्भर होता है। प्रतिकृति अपनी मूल कोशिका से थोड़ा बहुत भिन्न होने पर बनने वाली संतति में कुछ विभिन्नताएं उत्पन्न होती है। जिससे वह अपनी जनक पीढ़ी से कुछ भिन्न लक्षणों वाले होते हैं।
जब कभी पर्यावरणीय परिवर्तन होते हैं तो पूरी समष्टि (जाती) एक साथ नष्ट नहीं होती है कुछ भिन्न लक्षणों वाले जीव जो उन परिवर्तनों को सहन कर सकते हैं वह जीवित बच जाते हैं। इस प्रकार विभिन्नताएं जाति के अस्तित्व को बनाए रखने में सहायक होती हैं।
नोट: DNA का पूरा नाम डी ऑक्सि राइबोस न्यूक्लिक अम्ल होता है ।
RNA का पूरा नाम राइबोस न्यूक्लिक अम्ल होता है।
एक बार इन्हें जरूर पढ़े
अलैंगिक जनन : विखंडन और खण्डन
अलैंगिक जनन : जनन के लिए आवश्यक कोशिका यदि केवल एक जीव से प्राप्त हो अथवा वह नया जीव बना सके, इस प्रकार के जनन को अलैंगिक जनन कहते हैं।
एकल जीवो में प्रजनन की विधि : एकल जीव में प्रजनन केवल एक ही जीव द्वारा होता है इसलिए इसे अलैंगिक जनन के नाम से भी जाना जाता है। आइए इसके प्रकार एक एक करके देखते है :
विखंडन : एक कोशिकीय जीवो, जीवाणु एवं प्रोटोजोआ संघ के जीवो में जनन विखंडन द्वारा होता है। इनमें द्विखंडन पाया जाता है। कोशिका दो लगभग बराबर भागों में बंट जाती है। जैसे – अमीबा में ।
कुछ एक कोशिकीय जीवो में शारीरिक संरचना अधिक संगठित होती है। इनमें कोशिका विभाजन एक निश्चित तल में होता हैं। जैसे – कालाजार के रोगाणु, लेस्मानिया आदि ।
प्लाज्मोडियम में विखंडन पाया जाता है जिसमें एक कोशिका एक साथ बहुत सारी संतति कोशिकाओं में विभाजित हो जाती है।
खण्डन : सरल संरचना वाले बहुकोशिकीय जीवो में इस विधि से जनन होता है । जैसे स्पाइरोगाइरा प्राय: विकसित होकर छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाता है तथा प्रत्येक टुकड़ा (खंड) वृद्धि करके नया स्पाइरोगाइरा तैयार कर देता है।
परंतु यह सभी बहुकोशिकीय जीवो के लिए सत्य नहीं है क्योंकि उनकी विभिन्न कोशिकाएं विशेष कार्यों के लिए संगठित होकर विशेष ऊतक का निर्माण करते हैं और यह ऊतक संगठित होकर अंग बनाते हैं। शरीर में अंगों की स्थिति भी निश्चित होती है ऐसी सजग परिस्थिति में सरल कोशिका विभाजन से जनन होना अवहारिक है। अतः बहुकोशिकीय जीवों में जनन के लिए अधिक जटिल विधियां काम आती है।
पुनरूद्भवन ( पुनर्जनन) और मुकुलन
पुनरूद्भवन ( पुनर्जनन): कुछ जीवो में अपने कायिक भाग से नए जीव के निर्माण की क्षमता होती है। यदि जीव कुछ टुकड़ों में टूट जाता है तो इसका प्रत्येक टुकड़ा वृद्धि करके नई जीव में विकसित हो जाता है। जैसे – हाइड्रा, प्लेनेरिया आदि।
पुनरूद्भवन विशेष कोशिका द्वारा होता है। जिनमें बहुत व्यवस्थित रूप से क्रमिक परिवर्तन होते हैं ,जिसे परिवर्धन कहते हैं। इसे जनन नहीं मान सकते क्योंकि प्रत्येक जीव के किसी भी भाग को काटकर नया जीव उत्पन्न नहीं किया जा सकता है।
मुकुलन : यीस्ट जैसे एक कोशिकीय जीव में एक छोटा मुकुल उभर कर कोशिका से अलग हो जाता है और स्वतंत्र रूप से वृद्धि करके नया यीस्ट बन जाता है।
बहुकोशिकीय जीव हाइड्रा में कोशिकाओं के नियमित विभाजन के कारण आधार भाग से कुछ ऊपर एक उभार मुकुल विकसित होता है जो धीरे-धीरे वृद्धि करके नये जीव में बदल जाता है। बड़ा होने पर यह जनक से अलग होकर एक नया हाइड्रा बनता है ।