Class 12 Chemistry Chapter 4 d और f ब्लॉक के तत्त्व Part 3 d और f ब्लॉक के तत्त्व का ही एक अहम् भाग है | अगर आप इस इकाई अथवा पाठ को अच्छे से अध्ययन करना चाहते है तो हम आपसे यही अनुरोध करते है कि आप इस बहुत बड़ी इकाई को छोटे छोटे part में पढ़े | यही वजह है कि हम आपको यहाँ पर part वाइज नोट्स Provide कर रहे है | इस part में जो भी महत्वपूर्ण हैडिंग है उन्हें जरूर याद करे | क्यूंकि ये ही आपको अच्छे मार्क्स प्राप्त करने में मदद करेंगी |
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Class 12 Chemistry Chapter 4 d और f ब्लॉक के तत्त्व Part 3
Class 12 Chemistry Chapter 4 d और f ब्लॉक के तत्त्व Part 3 में हम बोर्ड में पूछे गये कम से कम 3 से 5 मार्क्स का अध्ययन करेंगे | अत: आप इन्हें ध्यान से पढ़े | अगर आप कुछ समस्या महसूस करते है तो आप हमे सम्पर्क कर सकते हो और आप Ask Question पर क्लिक करके प्रश्न भी पूछ सतके हो | हम आपसे ये गुजारिश करते है कि आप इन महत्वपूर्ण हैडिंग को अवस्य याद करेंगे | क्यूंकि ये वो सभी हैडिंग है जो पिछले बहुत सालो के पेपर में रिपीट हुई है | अगर आप इन्हें याद करके एग्जाम में बैठते है तो आप 90 % से अधिक अंक हासिल कर सकते है |
Class 12 Chemistry Chapter 4 d और f ब्लॉक के तत्त्व Part 3 में महत्वपूर्ण Headings निम्नलिखित है | इन्हें अच्छे से याद करे | ये आपको अच्छे अंक दिलाने में मदद करेगी:
- संक्रमण तत्वों में रंगीन आयनो का बनना
- संकुल योगिको का बनना और लीगैण्ड
- संक्रमण योगिको में उत्प्रेरकीय गुण
- संक्रमण योगिको में अंतराकाशी योगिक का बनना
- संक्रमण योगिको में मिश्र धातु का बनना
संक्रमण तत्वों में रंगीन आयनो का बनना
संक्रमण तत्वों में रंगीन आयनो का बनना :- संक्रमण धातुओ के अधिकांश योगिक ठोस अवस्था में या जलीय अवस्था में रंगीन होते है| इनके मुख्य रूप से दो कारण होते है –
अ) इलेक्ट्रानो के d-d संक्रमण ब) आवेश स्थानान्तरण स्पेक्ट्रा
अ) इलेक्ट्रानो के d-d संक्रमण:- विलगित अवस्था में पांचो d कक्षको की उर्जा समान होती है , इसलिए इन्हें सम्भ्रंश कक्षक कहते है|
जब कोई उदासीन लिगेंड जैसे H2O या ऋण आयनिक लिगेंड इनके साथ संकुल योगिक बनता है, तो कुछ कक्षको की उर्जा उच्च व कुछ की कम हो जाती है, तब इलेक्ट्रान कम उर्जा स्तर में चले जाते है| जब ये द्रश्य क्षेत्र में आते है तो उत्तेजन उर्जा प्रकाश से ली जाती है इसलिए ये रंगीन दिखाई देते है|
ब) आवेश स्थानान्तरण स्पेक्ट्रा:- आवेश स्थान्तरण के कारण भी संक्रमण धातुओ के योगिक रंगीन होते है| इनमे लिगेंड अणुओ, अयनो के कक्षको से इलेक्ट्रान धातु आयनों में स्थान्तरित हो जाते है| d – d संक्रमण की तुलना में इनसे उत्पन्न ऋण आयन अधिक गहरे होते है|
जैसे ;- Cu+ Mn7+ आदि आवेश स्थान्तरण के कारण रंगीन होते है|
संकुल योगिको का बनना और लीगैण्ड
संकुल योगिको का बनना और लीगैण्ड :– संक्रमण तत्व अनेक जटिल योगिको का निर्माण करते है , इन योगिको में संक्रमण धातु आयन, उन ऋण आयन अथवा उदासीन अणुओ के साथ संयोग करते है जिनमे इलेक्ट्रान के एकाकी युग्म (lone pair) उपस्थित होते है |
केन्द्रीय धातु से जुड़े ये सभी ऋण आयन अथवा उदासीन अणु लीगैण्ड कहलाते है |
जैसे : [Fe(CN)6]3-, [Fe(CN)6]4- आदि |
संक्रमण तत्वों में जटिल योगिक बनाने की प्रवृत्ति निम्न कारणों से होती है :
- धातु आयनों का छोटा आकार
- धातु आयनों का उच्च नाभिकीय आवेश
- लीगैण्ड द्वारा प्रदान किये गये इलेक्ट्रान के एकाकी युग्मो को ग्रहण करने के लिए उपयुक्त
- ऊर्जा के रिक्त d कक्षको की प्राप्यता |
जैसे :– कोबाल्ट आयन अमोनिया से अभिक्रिया करके निम्न संकुल आयन बनता है|
Co3+ + 6NH3 ———————> [Co(NH3)6 ]3+
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संक्रमण योगिको में उत्प्रेरकीय गुण
संक्रमण योगिको में उत्प्रेरकीय गुण :- d उपकोष रिक्त होने के कारण ये उत्प्रेर्कीय गुण प्रदर्शित करते है|
जैसे :- H2 + 3N2 ———Fe + Mo —–> 2NH3
इस अभिक्रिया में Fe व Mo दोनों उत्प्रेरक की तरह कार्य करते है |
नोट :- जिगलर नाटा उत्प्रेरक :- जो ट्राईटेनियम टेट्रा क्लोराइड व टेट्रा एथिल एलुमिनियम के मिश्रण का बना होता है इसका सामान्य सूत्र [ TiCl4 + (C2H5)3 Al ] होता है
एथिलीन के बहुलककीकरण में जिगलर नाटा उत्प्रेरक की तरह उपयोग किया जाता है –
nH2C=CH2 ——- जिगलर नाटा उत्प्रेरक ———> -[-CH2-CH2-]-n
संक्रमण योगिको में अंतराकाशी योगिक का बनना
संक्रमण योगिको में अंतराकाशी योगिक का बनना :- संक्रमण धातुओ के क्रिष्टल में परमाणुओ के निकटतम रूप में व्यवस्थित होने पर भी इनके मध्य छोटे छोटे रिक्त स्थान शेष रह जाते है जिन्हें अन्तराकाश कहते है| इन अन्तराकाश में छोटे छोटे अधातु परमाणु जैसे :- H , B , C व N आदि स्थान ग्रहण कर लेते है और इनके साथ धातु परमाणु बना लेते है| इस प्रकार बने योगिक को अन्तराकाशी योगिक कहते है|
ये दो प्रकार के होते है –
1- रससमीकरणमिति योगिक :– ऐसे योगिक जिनके अनुसुत्र निश्चित होते है रससमीकरणमिति योगिक कहलाते है|
जैसे :- NH3 , CoH2 , FeH2 आदि
2- अरससमीकरणमिति योगिक :- ऐसे योगिक जिनके अनुसुत्र निश्चित नही होते है अरससमीकरणमिति योगिक कहलाते है|
जैसे :- Fe0.94O व Fe0.84O के मध्य होता है अर्थात इनका सूत्र एक समान नही होता है|
अन्तराकाशी योगिक के भोतिक गुण :-
इनके गुण निम्नलिखित होते है –
1-अन्तराकाशी योगिको के गलनांक उच्च होते है , जो शुद्ध धातुओ से भी अधिक होते है |
2- ये अति कठोर होते है| यहाँ तक की कुछ की कठोरता तो लगभग हीरे के समान होती है
3- इन योगिको में धातुओ की चालकता अपरिवर्तित रहती है |
4. ये रासायनिक रूप से निष्क्रिय होते है |
संक्रमण योगिको में मिश्र धातु का बनना
संक्रमण योगिको में मिश्र धातु का बनना:- दो या दो से धातुओ अथवा धातु व अधातु के समांगी विलयन या ठोस को मिश्र धातु कहते है|
जैसे :- पीतल , कांसा , मृदा धातु गनमेटल आदि मिश्र धातु के उदहारण है |