Class 12 Chemistry Chapter 5 उपसहसंयोजन योगिक Part 5 उपसहसंयोजन योगिक का ही एक अहम् भाग है | अगर आप इस इकाई अथवा पाठ को अच्छे से अध्ययन करना चाहते है तो हम आपसे यही अनुरोध करते है कि आप इस बहुत बड़ी इकाई को छोटे छोटे part में पढ़े | यही वजह है कि हम आपको यहाँ पर part वाइज नोट्स Provide कर रहे है | इस part में जो भी महत्वपूर्ण हैडिंग है उन्हें जरूर याद करे | क्यूंकि ये ही आपको अच्छे मार्क्स प्राप्त करने में मदद करेंगी |
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Class 12 Chemistry Chapter 5 उपसहसंयोजन योगिक Part 5
Class 12 Chemistry Chapter 5 उपसहसंयोजन योगिक Part 5 में हम बोर्ड में पूछे गये कम से कम 3 से 5 मार्क्स का अध्ययन करेंगे | अत: आप इन्हें ध्यान से पढ़े | अगर आप कुछ समस्या महसूस करते है तो आप हमे सम्पर्क कर सकते हो और आप Ask Question पर क्लिक करके प्रश्न भी पूछ सतके हो | हम आपसे ये गुजारिश करते है कि आप इन महत्वपूर्ण हैडिंग को अवस्य याद करेंगे | क्यूंकि ये वो सभी हैडिंग है जो पिछले बहुत सालो के पेपर में रिपीट हुई है | अगर आप इन्हें याद करके एग्जाम में बैठते है तो आप 90 % से अधिक अंक हासिल कर सकते है |
Class 12 Chemistry Chapter 5 उपसहसंयोजन योगिक Part 5 में महत्वपूर्ण Headings निम्नलिखित है | इन्हें अच्छे से याद करे | ये आपको अच्छे अंक दिलाने में मदद करेगी:
- उपसहसंयोजन योगिको में आबंधन
- संयोजकता आबन्ध सिद्धांत (VBT)
- संयोजकता आबन्ध सिद्धांत की सीमाएं
- क्रिश्टल क्षेत्र सिधांत (CFT)
- क्रिश्टल क्षेत्र सिधांत की सीमाएं
- धातु कर्बोनिलो में आबन्ध और उपसहसंयोजक योगिको का महत्व
उपसहसंयोजन योगिको में आबंधन
उपसहसंयोजन योगिको में आबंधन :- उपसहसंयोजन योगिको के आबंधन में केन्द्रक धातु के इलेक्ट्रान प्रतिवेशी अणुओ या अयनो का प्रभाव प्रदर्शित करने के लिए चार सिद्धात प्रस्तुत किये गये जो निम्न है –
- संयोजकता आबन्ध सिधांत
- क्रिश्टल क्षेत्र सिद्धांत
- आणविक क्षेत्र सिधांत
- लिगेंड क्षेत्र सिद्धांत
इस आध्याय में हम केवल प्रथम दो के बारे में ही अध्ययन करेंगे –
संयोजकता आबन्ध सिद्धांत (VBT)
संयोजकता आबन्ध सिद्धांत(VBT) :-यह सिद्धांत लिनियस पोलिंग ने 1931 में इंग्लेंड में दिया था| इसके अनुसार निम्नलिखित अवधारनाए है :
- सर्वप्रथम केन्द्रीय धातु अपनी ऑक्सीकरण संख्या के अनुरूप इलेक्ट्रान त्यागकर धन आयन बनाता है|
- केन्द्रीय धातु परमाणु या आयन के ये रिक्त कक्षक संकरित होकर समान संख्या में समान उर्जा के नये कक्षक संकरित देते है|
- केन्द्रीय धातु परमाणु या आयन के संकरण में भाग लेने वाले d कक्षक nd कक्षक हो सकते है |
- अन्दर वाले d कक्षको का d क्क्षको में प्रयोग करने वाले संकुल योगिको में अयुग्मित इलेक्ट्रान की संख्या कम होती है |
- प्रत्येक लिगेंड के साथ कम से कम एक कक्षक होता है |
- इसके आधार पर अष्ट फलकीय वर्गाकार , समतलीय चतुष्फलक आकृतियों की विवेचना की गयी |
संयोजकता आबन्ध सिद्धांत की सीमाएं
संयोजकता आबन्ध सिद्धांत की सीमाएं:-
- यह सिधांत केन्द्रीय धातु और लिगेंड़ो के गुणों में परिवर्तन की व्याख्या नही कर सका |
- यह सिधांत केवल केन्द्रीय धातु के d कक्षको पर ही लागु होता है|
- यह विभिन्न सरंचनाओ की तुलनात्मक उर्जाओ की व्याख्या नही करता है |
क्रिश्टल क्षेत्र सिधांत (CFT)
क्रिश्टल क्षेत्र सिधांत (CFT) :- संयोजकता आबन्ध सिद्धांत उपसहसंयोजन योगिको के चुम्बकीय गुणों एवं प्रकाशिक अवशोषण स्पेक्ट्रा की व्याख्या नही कर सका इसलिए वैज्ञानिक H बेथे व वेन वलेक द्वारा 1950 में क्रिश्टल सिद्धांत प्रस्तुत किया जिसके अनुसार निम्नलिखित अवधारणाये थी –
- संकरण धातु संकुल के केन्द्रीय आयन का कार्य करती है|
- लिगेंड बिंदु आवेश की तरह माने जाते है|
- संकुल योगिको में धातु आयन व लिगेंड के मध्य बन्ने वाले आबन्ध को पूर्णतया : आयनिक माना जाता है|
- यह स्थिर विद्युत आकर्षण बल धनायन व ऋण आयन के मध्य आयन आयन आकर्षण बल हो सकता है, या धन आयन व उदासीन लिगेंड़ो के मध्य आयन द्विधुर्व आकर्षण बल हो सकता है |
- लिगेंडो का प्रभाव विशेष रूप से d क्क्षको के इलेक्ट्रानो पर चिन्हित होता है और केन्द्रीय धातु के चारो और उनकी संख्या और व्यवस्था पर निर्भर करता है |
क्रिश्टल क्षेत्र सिधांत की सीमाएं
अनुप्रयोग :– क्रिश्टल क्षेत्र सिधांत द्वारा संकुलों के चुम्बकीय गुणों की संगुधता से समझाया जा सकता है| इसी सिद्धांत द्वारा स्पष्ट हुआ की अयुग्मित इलेक्ट्रान वाला तत्व अनुचुम्ब्कीय तथा युग्मित इलेक्ट्रान वाला तत्व प्रतिचुम्बकीय होता है|
सीमाए :-
1- यह सिद्धांत केवल d क्क्षको को धातु आयन को परिभाषित करता है |
2- यह सिद्धांत धातु व लिगेंड़ो के मध्य आबन्ध की वियोजन नही कर सकता है |
3- यह सिधांत लिगेंडो का आपेक्षित समयों का स्पष्टीकरण नही से सका |
4 – संकुलों में पायी आब्न्धो पर यह विचार नही करता है |
धातु कर्बोनिलो में आबन्ध और उपसहसंयोजक योगिको का महत्व
धातु कर्बोनिलो में आबन्ध :- धातु कर्बोनिल योगिक अधिकतर संक्रमण धातुओ द्वारा प्राप्त होते है 1 इनमे केवल कर्बोनिल लिगेंड उपस्थित होते है 1 इन्हें होमोलेप्टिक कर्बोनिल योगिक कहते है 1
ये दो प्रकार के होते है –
1- एकल धातु कर्बोनिल योगिक
2- बहु केन्द्रीय कर्बोनिल योगिक
इनके बारे में आप आगे की कक्षाओ में अध्ययन करेंगे 1
उप सहसंयोजक योगिको का महत्व तथा अनुप्रयोग : इनके विभिन्न महत्व है, जिनमे से कुछ निम्न है :
1: गुणात्मक विश्लेषण में
2: धातुओ के निष्कर्षण में
3: जैविक निकायों में
4: एलेक्ट्रोप्लाटिंग में
5: फोटोग्राफी में
……………….THE END ………………..