Class 12 Chemistry Chapter 6 हैलोएल्केन तथा हैलोऐरीन Part 1 हैलोएल्केन तथा हैलोऐरीन अथवा Heloelken tatha heloerin का ही एक अहम् भाग है | अगर आप इस इकाई अथवा पाठ को अच्छे से अध्ययन करना चाहते है तो हम आपसे यही अनुरोध करते है कि आप इस बहुत बड़ी इकाई को छोटे छोटे part में पढ़े | यही वजह है कि हम आपको यहाँ पर part वाइज नोट्स Provide कर रहे है | इस part में जो भी महत्वपूर्ण हैडिंग है उन्हें जरूर याद करे | क्यूंकि ये ही आपको अच्छे मार्क्स प्राप्त करने में मदद करेंगी |
Table of Contents
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Class 12 Chemistry Chapter 6 हैलोएल्केन तथा हैलोऐरीन Part 1
Class 12 Chemistry Chapter 6 हैलोएल्केन तथा हैलोऐरीन Part 1 में हम बोर्ड में पूछे गये कम से कम 3 से 5 मार्क्स का अध्ययन करेंगे | अत: आप इन्हें ध्यान से पढ़े | अगर आप कुछ समस्या महसूस करते है तो आप हमे सम्पर्क कर सकते हो और आप Ask Question पर क्लिक करके प्रश्न भी पूछ सतके हो | हम आपसे ये गुजारिश करते है कि आप इन महत्वपूर्ण हैडिंग को अवस्य याद करेंगे | क्यूंकि ये वो सभी हैडिंग है जो पिछले बहुत सालो के पेपर में रिपीट हुई है | अगर आप इन्हें याद करके एग्जाम में बैठते है तो आप 90 % से अधिक अंक हासिल कर सकते है |
Class 12 Chemistry Chapter 6 हैलोएल्केन तथा हैलोऐरीन Part 1 में महत्वपूर्ण Headings निम्नलिखित है | इन्हें अच्छे से याद करे | ये आपको अच्छे अंक दिलाने में मदद करेगी:
- हैलोजन और इसका वर्गीकरण हैलोएल्केन्स और हेलोएरीन्स
- हैलोजन परमाणु की संख्या के आधार पर वर्गीकरण
- डाई हेलोएल्केन्स जैसे जेम – डाईहैलाइड, विसिनल- डाईहैलाइड और α, ω डाई हैलाइड
- हैलोएरीन्स और इसके विभिन्न प्रकार
- C-X आबंध की प्रकृति के आधार पर वर्गीकरण
- sp3 – संकरित C-X आबंध वाले यौगिक जैसे मोनो हैलोएल्केन, एलिलिक हैलाइड और बेन्जिलिक हैलाइड
- sp2 – संकरित C-X आबंध वाले यौगिक जैसे एरिल हैलाइड और वाइनिलिक हैलाइड
- sp – संकरित C-X आबंध वाले यौगिक
- IUPAC पद्धति में मोनो हैलोएल्केनो का नामकरण
- कुछ महत्वपूर्ण IUPAC नाम जो पेपर में आये है
- मोनो हैलोएल्केनो में समायवता जैसे श्रृंखला समायवता, स्थान समायवता और प्रकाशिक समायवता
- मोनो हैलोएल्केनो के विरचन की सामान्य विधियां एल्केनोल से, ग्रूव प्रक्रम
- एल्केनोल पर फास्फोरस हैलाइड और थायोनिल क्लोराइड की अभिक्रिया द्वारा मोनो हैलोएल्केनो का विरचन
- एल्केन के हैलोजनिकरण द्वारा मोनो हैलोएल्केनो का विरचन और स्वार्ट्स अभिक्रिया
- एल्किन द्वारा मोनो हैलोएल्केनो का विरचन और मर्कोनिकोफ़ नियम
- मोनो कार्बोक्सिलिक अम्लो द्वारा मोनो हैलोएल्केनो का विरचन और बिर्नबोम -सिमोनीनी अभिक्रिया
- हैलोएल्केनो के हैलोजन विनिमय , ईथर और प्राथमिक एमिन द्वारा मोनो हैलोएल्केनो का विरचन
- C -X आबंध की प्रकृति
- मोनो हैलोएल्केन के भौतिक गुण
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हैलोजन और इसका वर्गीकरण हैलोएल्केन्स और हेलोएरीन्स
हैलोजन : वे योगिक जो हाइड्रो कार्बोन के एक या एक से अधिक हाइड्रोजन परमाणुओ को हैलोजन परमाणु की समान संख्या से प्रतिस्थापित करने के फलस्वरूप प्राप्त होते है , हैलोजन कहलाते है | जैसे : CH3Cl , C2H5Br, C6H5Br आदि |
इन्हें सामानयत: दो वर्गो में रखा गया है :
1: हैलोएल्केन्स
2: हेलोएरीन्स
1: हैलोएल्केन्स : हाइड्रो कर्बनो के वे हैलोजन व्युत्पन्न जो एलिफैटिक हाइड्रो कार्बोनो से प्राप्त होते है, हैलोएल्केन्स कहलाते है |
जैसे : CH3Cl , C2H5Br आदि |
2: हेलोएरीन्स : हाइड्रो कर्बनो के वे हैलोजन व्युत्पन्न जो एरोमैटिक हाइड्रो कार्बोनो से प्राप्त होते है, हेलोएरीन्स कहलाते है |
जैसे : C6H5Br, C6H5Cl आदि |
हैलोएल्केन्स और हैलोएरीन्स का वर्गीकरण :
इन्हें सामानयत: निम्न आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है :
अ) हैलोजन परमाणु की संख्या के आधार पर
ब) c – x आबंध की प्रकृति के आधार पर
हैलोजन परमाणु की संख्या के आधार पर वर्गीकरण
हैलोजन परमाणु की संख्या के आधार पर वर्गीकरण : हैलोजन परमाणु की संख्या के आधार पर हैलोएल्केन्स और हैलोएल्कीन्स दोनों को मोनो, डाई , ट्राई, टेट्रा और पोली हैलोजन में वर्गीकृत करते है | जिनमे क्रमश: एक , दो , तीन , चार और अधिक परमाणु उपस्थित होते है |
1: हैलोएल्केन्स : ये निम्नलिखित प्रकार के होते है :
अ: मोनो हैलोएल्केन्स : इन्हें एल्केंस से एक हाइड्रोजन परमाणु को हैलोजन परमाणु द्वारा प्रतिस्थापित करके प्राप्त किया जाता है | इनका सामान्य सूत्र CnH2n+1X होता है जहाँ x हैलोजन तत्व होता है |
जैसे : CH3Cl , C2H5Br आदि |
मोनो हैलोएल्केन्स में हैलोजन परमाणु प्राथमिक , द्वितियिक , तृतीयक कार्बन परमाणु से जुड़ा हो सकता है , इस आधार पर इन्हें प्राथमिक, द्वितीयक , या तृतीयक एल्किल हैलाइडो में वर्गीकृत किया जा सकता है|
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ब) पोली हैलोएल्क्न्स : एल्केन के वे हैलोजन व्युत्पन्न जिनके अणुओ में एक से अधिक हैलोजन परमाणु विधमान रहते है , पोली हैलोएल्केन्स कहलाते है |
जैसे : CH2Cl2, CH3-CHCl2, C6H6Cl6, आदि |
आइये इन्हें भी एक एक करके देखते है |
डाई हेलोएल्केन्स जैसे जेम - डाईहैलाइड, विसिनल- डाईहैलाइड और α, ω डाई हैलाइड
a) डाई हेलोएल्केन्स : वे एल्केन्स जिनमें दो हैलोजन परमाणु उपस्थित होते है,डाई हेलोएल्केन्स कहलाते है | जैसे : CH3-CCl2-CH3, CH3-CHCl2 आदि | इन्हें भी तीन वर्गो में वर्गीकृत किया गया है :
अ) जेम – डाईहैलाइड :जब दोनों हैलोजन परमाणु एक ही कार्बन परमाणु से जुड़े होते है तो उन्हें जैम – डाईहैलाइड या एल्किलिडीन डाई हैलाइड कहते है|
जैसे :
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ब) विसिनल- डाईहैलाइड: जब दो हैलोजन परमाणु दो निकटवर्ती कार्बन परमाणु ओ से जुड़े होते है तो वे विसिनल- डाईहैलाइड कहलाते है |
जैसे :
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स) α , ω डाई हैलाइड : जब दो हैलोजन परमाणु तीन या तीन से अधिक कार्बन परमाणु ओ की श्रंखला के सिरों के कार्बन परमाणु ओ से जुड़े होते है तो इन्हें क्रमश: α , ω डाई हैलाइड कहते है |
जैसे :
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हैलोएरीन्स और इसके विभिन्न प्रकार
2: हैलोएरीन्स: एरोमैटिक हाइड्रोकार्बनो से बनने वाले हैलोजन, हैलोएरीन्स कहलाते है |
जैसे :
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बेंजीन व इसके समजात योगिक हैलोजन से अभिक्रिया करके दो प्रकार के प्रतिस्थापित उत्पाद बनाते है जो हैलोजन परमाणु के जुड़ने के स्थान पर निर्भर करते है | इसमें ये दो निम्न प्रकार है :
1: पाशर्व श्रृंखला (एलिफैटिक योगिक)
2: नाभिकीय श्रृंखला (बेंजीन वलय)
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1: पाशर्व श्रृंखला (एलिफैटिक योगिक): वे यौगिक जिनमे हैलोजन परमाणु बेंजीन वलय से जुड़े किसी अन्य कार्बन परमाणु से जुडा रहता है उसे पाशर्व श्रृंखला (एलिफैटिक योगिक) योगिक कहते है |
2: नाभिकीय श्रृंखला (बेंजीन वलय) अथवा नाभिकीय प्रतिस्थापित हैलोजन योगिक : वे यौगिक जिनमे हैलोजन परमाणु बेंजीन वलय से या नाभिक से सीधे जुड़ा होता है एरिल हैलाइड या हैलोएरिन्स कहलाते है |
जैसे :

ये डाई, ट्राई , टेट्रा आदि हैलोजन प्रतिस्थापित व्युत्पन्न भी होते है जो बेंजीन वलय पर इनकी स्थिति पर आधारित होते है|
जैसे :
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C-X आबंध की प्रकृति के आधार पर वर्गीकरण
C-X आबंध की प्रकृति के आधार पर वर्गीकरण : C-X आबंध की प्रकृति के आधार पर इन्हें तीन वर्गो में विभाजित किया गया है :
a) sp3 – संकरित C-X आबंध वाले यौगिक
b) sp2 – संकरित C-X आबंध वाले यौगिक
c) sp – संकरित C-X आबंध वाले यौगिक
sp3 - संकरित C-X आबंध वाले यौगिक जैसे मोनो हैलोएल्केन, एलिलिक हैलाइड और बेन्जिलिक हैलाइड
a) sp3 – संकरित C-X आबंध वाले यौगिक : इस प्रकार के मोनो हैलाइड में हैलोजन परमाणु sp3 – संकरित C-X से जुड़ा होता है | अर्थात इसमें हैलोजन परमाणु उस कार्बन से जुडा होता है जिसमे वह एकल अबंध से किसी अन्य कार्बन से जुड़ा रहता है | ये निम्नलिखित प्रकार के होते है :
अ) मोनो हैलोएल्केन : इस प्रकार के कार्बोनिक योगिको में हैलोजन परमाणु एल्किल समूह के कार्बन परमाणु से सीधा आबन्धित होता है इसलिए इन्हें R-X से व्यक्त करते है | इनका सामान्य सूत्र CnH2n+1-X होता है | इन्हें भी तीन भागो में विभक्त किया गया है:
1: प्राथमिक एल्किल हैलाइड
2: द्वितियिक एल्किल हैलाइड
3: तृतीयक एल्किल हैलाइड
1: प्राथमिक एल्किल हैलाइड : जब एल्किल समूह में हैलोजन परमाणु प्राथमिक कार्बन से sp3 संकरण रूप से जुड़ा होता है तो उसे प्राथमिक एल्किल हैलाइड कहते है |
जैसे :
2: द्वितियिक एल्किल हैलाइड : जब एल्किल समूह में हैलोजन परमाणु द्वितियिक कार्बन से sp3 संकरण रूप से जुड़ा होता है तो उसे द्वितियिक एल्किल हैलाइड कहते है |
जैसे :
3: तृतीयक एल्किल हैलाइड : जब एल्किल समूह में हैलोजन परमाणु तृतीयक कार्बन से sp3 संकरण रूप से जुड़ा होता है तो उसे तृतीयक एल्किल हैलाइड कहते है |
जैसे :
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ब) एलिलिक हैलाइड : जब मोनो एल्किल हैलाइडो में हैलोजन परमाणु sp3 संकरित कार्बन से जुड़ा होता है परन्तु यह कार्बन किसी अन्य द्वि-आबन्धित कार्बन से जुड़ा होता है तब इन हैलाइडो को एलिलिक हैलाइड कहते है |
जैसे :
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स) बेन्जिलिक हैलाइड : जब मोनो एल्किल हैलाइडो में हैलोजन परमाणु sp3 संकरित कार्बन से जुड़ा होता है परन्तु यह कार्बन किसी बेंजीन वलय से जुड़ा होता है तब इन हैलाइडो को बेन्जिलिक हैलाइड कहते है |
जैसे :

sp2 - संकरित C-X आबंध वाले यौगिक जैसे एरिल हैलाइड और वाइनिलिक हैलाइड
b) sp2 – संकरित C-X आबंध वाले यौगिक : इस प्रकार के मोनो हैलाइड में हैलोजन परमाणु sp2 – संकरित C-X से जुड़ा होता है | अर्थात इसमें हैलोजन परमाणु उस कार्बन से जुडा होता है जिसमे वह द्वि-आबंध से किसी अन्य कार्बन से जुड़ा रहता है | ये निम्नलिखित प्रकार के होते है :
अ) एरिल हैलाइड : जब मोनो एल्किल हैलाइडो में हैलोजन परमाणु sp2 संकरित कार्बन से किसी बेंजीन वलय से जुड़ा होता है तब इन हैलाइडो को एरिल हैलाइड कहते है |
जैसे :
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ब) वाइनिलिक हैलाइड : जब मोनो एल्किल हैलाइडो में हैलोजन परमाणु sp2 संकरित कार्बन से जुड़ा होता है तब इन हैलाइडो को वाइनिलिक हैलाइड कहते है |
जैसे :
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sp - संकरित C-X आबंध वाले यौगिक
c) sp – संकरित C-X आबंध वाले यौगिक : इस प्रकार के मोनो हैलाइड में हैलोजन परमाणु sp – संकरित C-X से जुड़ा होता है | अर्थात इसमें हैलोजन परमाणु उस कार्बन से जुडा होता है जिसमे वह त्रिक-आबंध से किसी अन्य कार्बन से जुड़ा रहता है |
जैसे :
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IUPAC पद्धति में मोनो हैलोएल्केनो का नामकरण
IUPAC पद्धति में मोनो हैलोएल्केनो का नामकरण : IUPAC पद्धति में हैलोजन को प्रतिस्थापी अर्थात पुर्वलग्न मानकर नाम दिया जाता है जिसमे कुछ नियम निम्न प्रकार है :
1: सर्वप्रथम सबसे लम्बी श्रृंखला का चयन करते है |
2: सर्वाधिक लम्बी श्रंखला का क्रमांकन उस किनारे से किया जाता जिससे हैलोजन परमाणु निकट होता है |
3: विभिन्न प्रकार के हैलोजन होने पर अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार प्राथमिकता दी जाती है |
इस chapter के सभी भाग
कुछ महत्वपूर्ण IUPAC नाम जो पेपर में आये है
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मोनो हैलोएल्केनो में समायवता जैसे श्रृंखला समायवता, स्थान समायवता और प्रकाशिक समायवता
मोनो हैलोएल्केनो में समायवता : इनमे निम्न प्रकार की समायवता पाई जाती है :
a) श्रृंखला समायवता
b) स्थान समायवता
c) प्रकाशिक समायवता
a) श्रृंखला समायवता : जब समान अणु सूत्र वाले योगिको में हैलोजन की स्थिति परिवर्तित हुए बिना , कार्बन श्रंखला की सरंचना भिन्न भिन्न होती है तो इनमे श्रृंखला समायवता होती है |
जैसे :
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b) स्थान समायवता : जब समान अणु सूत्र वाले योगिको में हैलोजन की स्थिति भिन्न भिन्न होती है तो इनमे स्थान समायवता होती है |
जैसे :
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c) प्रकाशिक समायवता : जब किसी एल्किल हैलाइड में असममित या काईरल कार्बन परमाणु अर्थात एसा कार्बन परमाणु जिस पर चार भिन्न भिन्न समूह या परमाणु जुड़े हो उपस्थित हो तो वह प्रकाशिक समायवता व्यक्त करता है|
जैसे :
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मोनो हैलोएल्केनो के विरचन की सामान्य विधियां एल्केनोल से, ग्रूव प्रक्रम
मोनो हैलोएल्केनो के विरचन की सामान्य विधियां: इन्हें निम्न विधियों से बनाया जा सकता है :
1: एल्केनोल से : एल्केनोल हाइड्रोजन हैलाइड से अभिक्रिया करके मोनो हैलो एल्केन देते है | एल्केनोल से हैलोजन अम्लो की क्रियाशीलता का क्रम HI>HBr>HCl होता है जबकि एल्केनोल की क्रियाशीलता का क्रम तृतीयक > द्वितीयक > प्राथमिक होता है |
जैसे :
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नोट : ग्रूव प्रक्रम : निर्जल जिंक क्लोराइड की उपस्थिति में प्रथमिक व द्वितीयक एल्केनोल HCl गैस से अभिक्रिया करके क्लोरो एल्केन देते है | यह प्रक्रम ग्रूव प्रक्रम कहलाता है |
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एल्केनोल पर फास्फोरस हैलाइड और थायोनिल क्लोराइड की अभिक्रिया द्वारा मोनो हैलोएल्केनो का विरचन
2: एल्केनोल पर फास्फोरस ट्राई-हैलाइड अथवा पेंटा-हैलाइड की अभिक्रिया द्वारा : जब एल्केनोल पर फास्फोरस ट्राई-हैलाइड अथवा पेंटा-हैलाइड की अभिक्रिया करायी जाती है तो मोनो हैलोएल्केन प्राप्त होते है |
जैसे :

3: एल्केनोल पर थायोनिल क्लोराइड की अभिक्रिया द्वारा (डार्जेन प्रक्रम): जब एल्केनोल पर थायोनिल क्लोराइड की अभिक्रिया पीरीडीन की उपस्थिति में करायी जाती है तो उच्च मात्रा में क्लोरोल्केन प्राप्त होते है | इस प्रक्रम को डार्जेन प्रक्रम कहते है | क्युकी इसमें बनने वाले सह उत्पाद गैसे होती है इसलिए इसमें ब्रोमो और आयोड़ो नही बनाये जा सकते है |
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एल्केन के हैलोजनिकरण द्वारा मोनो हैलोएल्केनो का विरचन और स्वार्ट्स अभिक्रिया
4: एल्केन के हैलोजनिकरण द्वारा : एल्केन की क्लोरिन और ब्रोमिन से प्रकाश अथवा उत्प्रेरक की उपस्थिति में मुक्त मूलक प्रतिस्थापन अभिक्रिया द्वारा क्रमश: क्लोरो और ब्रोमोएल्केन प्राप्त होते है | एल्केन में हाइड्रोजन परमाणु के हैलोजन परमाणु द्वारा प्रतिस्थापन का क्रम तृतीयक > द्वितीयक>प्राथमिक होता है |
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नोट : एल्केन का आयोडीनिकरण करने पर HI प्राप्त होता है इस कारण अभिक्रिया उत्क्रमणीय होती है | अत: इसे रोकने के लिए आयोडीनिकरण ओक्सिकारको जैसे (HNO3, HIO3 आदि) की उपस्थिति में करते है |
स्वार्ट्स अभिक्रिया : एल्किल फ्लोराइड बनाने के लिए एल्किल क्लोराइड या ब्रोमाइड को अकार्बोनिक फ्लोराइड जैसे AsF3, SbF3, CoF3 , AgF, Hg2F2 आदि के साथ गर्म किया जाता है | यह अभिक्रिया स्वार्ट्स अभिक्रिया कहलाती है |
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एल्किन द्वारा मोनो हैलोएल्केनो का विरचन और मर्कोनिकोफ़ नियम
5: एल्किन द्वारा : एल्किन की हाइड्रोजन हैलाइड से योगात्मक अभिक्रिया कराने पर मोनो हैलाइड प्राप्त होते है | असममित एल्किन में यह अभिक्रिया मर्कोनिकोफ़ नियम के अनुसार होती है | जबकि परोक्साइड की उपस्थिति में HBr के साथ यह अभिक्रिया मर्कोनिकोफ़ नियम के विपरीत होती है | एल्किन के प्रति हैलोजन अम्लो की क्रियाशीलता का क्रम HI>HBr>HCl है |
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मर्कोनिकोफ़ नियम : असंतृप्त हाइड्रोकार्बन जैसे एल्कीन में योगात्मक अभिक्रिया में प्रतिकारक का ऋणात्मक भाग द्वि-आबन्ध (C = C) के उस कार्बन परमाणु से जुड़ता है, जिस पर हाइड्रोजन परमाणुओं की संख्या सबसे कम होती है। इसे मार्कोनीकॉफ का नियम कहते हैं।
जैसे :
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मोनो कार्बोक्सिलिक अम्लो द्वारा मोनो हैलोएल्केनो का विरचन और बिर्नबोम -सिमोनीनी अभिक्रिया
6: मोनो कार्बोक्सिलिक अम्लो द्वारा : मोनो कार्बोक्सिलिक अम्लो के सिल्वर लवण के कार्बन टेट्रा क्लोराइड में बने विलयन में जब ब्रोमिन प्रवाहित की जाती है तो ब्रोमो एल्केन प्राप्त होते है | यह अभिक्रिया साधारण ताप पर होती है | इसे हुन्सडिकर अभिक्रिया कहते है |
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बिर्नबोम -सिमोनीनी अभिक्रिया : क्रिस्टोल के अनुसार मोनो कार्बोक्सिलिक अम्लो के सिल्वर लवण के कार्बन टेट्रा क्लोराइड में बने विलयन में HgO की उपस्थिति में जब ब्रोमिन प्रवाहित की जाती है तो ब्रोमो एल्केन की अधिक मात्रा प्राप्त होती है| इस विधि से क्लोरोएल्केन भी बनाये जा सकते है परन्तु आयोड़ो एल्केन नही बनाये जा सकते है क्युकी मोनो कार्बोक्सिलिक अम्लो से आयोडीन अभिक्रिया करके एस्टर बनाती है | यह अभिक्रिया बिर्नबोम -सिमोनीनी अभिक्रिया कहलाती है |
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हैलोएल्केनो के हैलोजन विनिमय , ईथर और प्राथमिक एमिन द्वारा मोनो हैलोएल्केनो का विरचन
7: हैलोएल्केनो के हैलोजन विनिमय द्वारा : इसमें एक हैलोएल्केन से अन्य हैलोएल्केन बनाया जाता है सामान्यत: इसमें प्रतिस्थापित अभिक्रिया देखने को मिलती है | जैसे
फिनकेलस्टीन या कोनंट फिनकेलस्टीन अभिक्रिया : जब क्लोरो एल्केन या ब्रोमो एल्केन की सोडियम या पोटेशियम आयोडाइड के साथ मेथेनोल या एसीटोन की उपस्थिति में अभिक्रिया करायी जाती है तो हैलोजन विनिमय द्वारा आयोड़ो एल्केन प्राप्त होते है | यह अभिक्रिया फिनकेलस्टीन या कोनंट फिनकेलस्टीन अभिक्रिया के नाम से जानी जाती है |
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8: प्राथमिक एमिन द्वारा : जब एलिफैटिक प्राथमिक एमिन को नाइट्रोसिल क्लोराइड अथवा टिल्डेन अभिकर्मक के साथ अभिकृत किया जाता है तो मोनो क्लोरो एल्केन प्राप्त होते है |
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9: ईथर द्वारा : ईथर को PCl5 या PCl3 के साथ गर्म करने पर अभिक्रिया द्वारा मोनो क्लोरो या मोनो ब्रोमो एल्केन प्राप्त होते है |
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C -X आबंध की प्रकृति और मोनो हैलोएल्केन के भौतिक गुण
C -X आबंध की प्रकृति : हैलोएल्केन में कार्बन -हैलोजन आबंध ध्रुवीय प्रकृति का होता है | इस आबंध कार्बन के अपेक्षा हैलोजन की विधुत ऋणातमकता बहुत अधिक होती है | जिसके कारण इलेक्ट्रान युग्म हैलोजन परमाणु अपनी ओर विस्थापित क्र लेता है | इस कारण कार्बन पर आंशिक धनावेश और हैलोजन पर आंशिक ऋण आवेश आ जाता है | इसके फलस्वरूप कार्बन -हैलोजन आबंध एक ध्रुवीय सहसंयोजक आबंध की भांति कार्य करता है |
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नोट : विभिन्न हैलोजनो का समान एल्किल समूह के कार्बन के साथ C-X आबंध की प्रबलता का क्रम C-F>C-Cl>C-Br>C-I होता है |
मोनो हैलोएल्केन के भौतिक गुण : मोनोहैलोएल्केन के सामान्य भौतिक गुण निम्नलिखित है :
- इस श्रेणी के कुछ प्रारम्भिक योगिक जैसे क्लोरो मेथेन , ब्रोमो मेथेन और क्लोरो एथेन साधारण ताप पर रंगहीन होते है | ये सुगन्धित द्रव और उच्च सदस्य ठोस होते है |
- शुद्ध अवस्था में ये रंगहीन तथा मीठी गंध वाले होते है | परन्तु ब्रोमोइड और आयोडाइड प्रकाश की उपस्थिति में ये रंगीन हो जाते है |
- ये सभी जल में अविलय है क्योंकि इनमे जल के साथ हाइड्रोजन आबंध नही बनता है परन्तु एल्कोहोल , ईथर, बेंजीन आदि में ये विलय होते है |
- इनके क्वथनांक एवं गलनांक व घनत्व उच्च होते है |
- समान एल्किन वाले समूह वाले मोनो हैलोएल्केन के क्वथनांक व घनत्व का क्रम I>Br>Cl>F होता है |