Class 12 Chemistry Chapter 6 हैलोएल्केन तथा हैलोऐरीन Part 2 हैलोएल्केन तथा हैलोऐरीन अथवा Heloelken tatha heloerin का ही एक अहम् भाग है | अगर आप इस इकाई अथवा पाठ को अच्छे से अध्ययन करना चाहते है तो हम आपसे यही अनुरोध करते है कि आप इस बहुत बड़ी इकाई को छोटे छोटे part में पढ़े | यही वजह है कि हम आपको यहाँ पर part वाइज नोट्स Provide कर रहे है | इस part में जो भी महत्वपूर्ण हैडिंग है उन्हें जरूर याद करे | क्यूंकि ये ही आपको अच्छे मार्क्स प्राप्त करने में मदद करेंगी |
Table of Contents
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Class 12 Chemistry Chapter 6 हैलोएल्केन तथा हैलोऐरीन Part 2
Class 12 Chemistry Chapter 6 हैलोएल्केन तथा हैलोऐरीन Part 2 में हम बोर्ड में पूछे गये कम से कम 3 से 5 मार्क्स का अध्ययन करेंगे | अत: आप इन्हें ध्यान से पढ़े | अगर आप कुछ समस्या महसूस करते है तो आप हमे सम्पर्क कर सकते हो और आप Ask Question पर क्लिक करके प्रश्न भी पूछ सतके हो | हम आपसे ये गुजारिश करते है कि आप इन महत्वपूर्ण हैडिंग को अवस्य याद करेंगे | क्यूंकि ये वो सभी हैडिंग है जो पिछले बहुत सालो के पेपर में रिपीट हुई है | अगर आप इन्हें याद करके एग्जाम में बैठते है तो आप 90 % से अधिक अंक हासिल कर सकते है |
Class 12 Chemistry Chapter 6 हैलोएल्केन तथा हैलोऐरीन Part 2 में महत्वपूर्ण Headings निम्नलिखित है | इन्हें अच्छे से याद करे | ये आपको अच्छे अंक दिलाने में मदद करेगी:
- नाभिक स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाँए SN1 और SN2 अभिक्रिया की क्रियाविधि
- नाभिक स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाओ को प्रभावित करने वाले कारक
- एल्किल समूह और हैलोजन परमाणु की प्रकृति
- विलायक की व छोड़ने वाले समूह और नाभिकस्नेही प्रकृति
- SN1 व SN2 अभिक्रियाओ में विभेद
- उच्च एल्केनो और एल्कोहोलो का संश्लेषण
- ईथर और एमिनो का संश्लेषण
- एल्किल सायनाइड तथा एल्किल आइसो सायनाइडो का संश्लेषण
- नाइट्रोएल्केन एवं एल्किल नाइट्राईट का संश्लेषण
- एस्टरो व एल्केन थायोलो और थायो ईथर का संश्लेषण
- एल्किल सल्फोनेटो का संश्लेषण और निराकरण अथवा विलोपन अभिक्रियाएँ
- E1 अभिक्रिया और E2 अभिक्रिया
- हेलोएल्केन के अपचयन जैसे ग्रिग्नार्ड अभिकर्मक का संश्लेषण
- फ्रेंकलैण्ड अभिकर्मक अथवा डाईएल्किल जिंक का संश्लेषण
- टेट्रा एल्किल लेड और गिलमान अभिकर्मक का संश्लेषण
- फ्रीडल – क्राफ्ट्स अभिक्रिया और मोनो हैलो एल्केनो के उपयोग
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नाभिक स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाँए SN1 और SN2 अभिक्रिया की क्रियाविधि
मोंनो हैलोएल्केन्स के रासायनिक गुण : ये मुखत: निम्न अभिक्रियाएँ देते है :
- नाभिक स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाँए
- निराकरण या विलोपन अभिक्रियाएँ
- अपचयन अभिक्रियाएँ
- धातुओं के साथ अभिक्रियाएँ
- बेंजीन के साथ अभिक्रियाएँ
1: नाभिक स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाँए : जब किसी अभिक्रिया में किसी क्रियाधर(substrate) या कोई परमाणु या समूह किसी नाभिकरागी या नाभिकस्नेही अभिकर्मक के द्वारा प्रतिस्थापित होता है तो इसको नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया कहते है |
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यहाँ RX क्रियाधार है जबकि Nu-: समूह नाभिक स्नेही अभिकर्मक तथा X- हटने वाला समूह है, इसे SN से नामांकित करते है क्योंकि S = substitution तथा N = nucleophilic होता है | इस अभिक्रिया में हैलाइड आयनों का क्रम R-I > R-Br > R-Cl > R-F होता है | SN अभिक्रिया की क्रियाविधि एक-अणुक अथवा द्वि-अणुक दो प्रकार की होती है इन्हें क्रमश: SN1 व SN2 के रूप में व्यक्त करते है |
SN1 या एक अणुक क्रियाविधि : यह अभिक्रिया दो पदों में सम्पन्न होती है | इसके पहले पद में एल्किल हैलाइड धीरे -धीरे विषमांश विदलन के द्वारा अलग होकर कार्बोधनायन उत्पन्न करता है | दुसरे पद में तीर्वता से यह कार्बोधनायन नाभिक स्नेही अभिकर्मक से अभिक्रिया करके उत्पाद देता है |
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चूँकि इस अभिक्रिया में दर निर्धारक पद 1 में केवल एक अणु के सहसंयोजक बंध का विघटन होता है इसलिए इसकी कोटी एक है अतएव इसको एक -अणुक अभिक्रिया कहते है | इसका स्थायित्व क्रम CH3+ < 1 < 2 < 3 होता है |
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SN2 या द्वि-अणुक क्रियाविधि : यह अभिक्रिया एक पद में सम्पन्न होती है | इसके पहले भाग में मध्यवर्ती यौगिक धीरे -धीरे बनता है | दुसरे भाग में तीर्वता से यह टूटकर उत्पाद बना देता है | इस अभिक्रिया में दो अणुओ नका साथ – साथ सान्द्र्ण परिवर्तित होता है न| अत: यहाँ पर अभिक्रिया की दर एल्किल हैलाइड और नाभिक स्नेही दोनों के सान्द्र्ण पर निर्भर करता है |
अभिक्रिया की दर ∝ [एल्किल हैलाइड ][नाभिकस्नेही]
जैसे : जलीय विलयन के OH- आयन द्वारा मैथिल ब्रोमाइड का जल अपघटन
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चूँकि इस अभिक्रिया में दो अणुओ का सान्द्र्ण परिवर्तित हो रहा है अत: इसकी आणविकता दो है इसलिए इसको द्वि अणुक अभिक्रिया कहते है | इसमें विभिन्न एल्किल हैलाइडो का क्रियाशीलता का क्रम निम्न होता है :
CH3-x > RCH2-X > R2CH-X > R3C-X और R-I .R-Br > R-Cl > R-F
नाभिक स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाओ को प्रभावित करने वाले कारक
नाभिक स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाओ को प्रभावित करने वाले कारक : नाभिक स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाओ को प्रभावित करने वाले कारक निम्न लिखित है :
1: एल्किल समूह की प्रकृति
2: हैलोजन परमाणु की प्रकृति
3: विलायक की प्रकृति
4: छोड़ने वाले समूह की प्रकृति
5: नाभिकस्नेही की प्रकृति
एल्किल समूह और हैलोजन परमाणु की प्रकृति
1: एल्किल समूह की प्रकृति : इसमें भी अनेक प्रकार होते है जैसे :
अ) ध्रुवीय प्रभाव : क्रियाधर में +I और -I समूहों की उपस्थिति ध्रुवता को प्रभावित करती है | इसमें ध्रुवता बढने पर अभिक्रिया SN2 प्रक्रम से न होकर SN1 से होती है |
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इसका मुख्य कारण C-X वाले C पर CH3 – समूहों की संख्या बढने पर कार्बन पर इलेक्ट्रान घनत्व बढ़ जाता है जिससे उसके उपर ऋण आवेश बढ़ता है और यह नाभिक स्नेही अभिकर्मक के आक्रमण का विरोध करता है जिसके कारण एल्किल हैलाइडो की ध्रुवता बढने से SN2 अभिक्रिया नही होती है |
ब) त्रिविम प्रभाव : SN2 प्रक्रम की सरंचना में कार्बन परमाणु पर पांच समूह लगे होते है यदि इनका आकार बढ़ जाये तो त्रिविम तनाव बढ़ेगा और अभिकिया की दर घटेगी पंरतु एल्फा कार्बन पर भारी प्रतिस्थापी समूह होने के पर त्रिविम बाधा के कारण पीछे की दिशा से नाभिक स्नेही अभिकर्मक का आक्रमण सम्भव नही होता है इसलिए यह अभिक्रिया SN2 से न होकर SN1 से होगी |
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2: हैलोजन परमाणु की प्रकृति: हैलोजन परमाणु की प्रकृति बदलने से भी अभिक्रिया की दर प्रभावित होती है | SN1 और SN2 प्रक्रमो के प्रति एल्किल हैलाइडो की क्रियाशीलता की दर का घटता क्रम निम्न है :
R-I > R-Br > R-Cl > R-F
विलायक की व छोड़ने वाले समूह और नाभिकस्नेही प्रकृति
3: विलायक की प्रकृति :
अ) SN1 क्रियाविधि में विलायक की प्रकृति : कम ध्रुवणता के किसी विलायक जैसे एसिटिक अम्ल का संकर्मण अवस्था की उर्जा पर अत्यंत कम प्रभाव पड़ता है | दूसरी और उच्च ध्रुवणता के विलायक जैसे फोरमिक अम्ल और जल संकर्मण अवस्था को विलायकीकरण के कारण स्थायित्व प्रदान करते है जिसके परिणाम स्वरूप SN1 क्रियाविधि की अभिक्रिया की दर बढ़ जाती है |
ब) SN2 क्रियाविधि में विलायक की प्रकृति :ध्रुवी विलायको की प्रोटिक अथवा अप्रोटिक प्रकृति SN2 अभिक्रियाओ की दर को प्रभावित करने में अत्यंत महत्वपूर्ण होती है | जल (HOH), एल्कोहोल (ROH) कार्बोक्सिलिक अम्ल (RCOOH) ध्रुवी प्रोटिक विलयको में वर्गीकृत किये जाते है इनके विधमान -OH समूह के कारण SN2 अभिक्रिया की दर बहुत कम या नगण्य हो जाती है | जबकि अन्य के कारण यह बढ़ जाती है |
4: छोड़ने वाले समूह की प्रकृति : जैसे की छोड़ने वाला समूह X- क्षारक के रूप का होता है अत: क्षीण क्षारक प्रबल क्षारक की अपेक्षा आसानी से प्रतिस्थापित हो जाते है | हैलाइड आयन के हटने का घटता क्रम निम्न होता है :
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5: नाभिकस्नेही की प्रकृति : सामान्यत: नाभिक स्नेही की प्रकृति का SN1 प्रक्रम पर कोई प्रभाव नही पड़ता है जबकि SN2 प्रक्रम को यह अत्यधिक प्रभावित करती है | प्रबल नाभिक स्नेही SN2 प्रक्रम को बढ़ावा देते है |
SN1 व SN2 अभिक्रियाओ में विभेद
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उच्च एल्केनो और एल्कोहोलो का संश्लेषण
नाभिक स्नेही अभिकियाओ के उदाहरण : इनके प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित है :
1: उच्च एल्केनो का संश्लेषण : जब सोडियम एल्काईलाइड या एल्काईनिल मैग्नीशियम हैलाइड की मोनो हैलोएल्केन के साथ अभिक्रिया कराई जाती है तो, उच्चतर एल्काइन प्राप्त होते है |
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2: एल्कोहोलो का संश्लेषण : एल्किल हैलाइडो का जलीय कास्टिक क्षारो या नम सिल्वर ऑक्साइड से जल-अपघटन करने पर एल्कोहोल बनते है |
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ईथर और एमिनो का संश्लेषण
3: ईथर का संश्लेषण : एल्किल हैलाइडो की सोडियम एल्कोक्साईड के साथ अभिक्रिया करने पर एल्कोक्सी एल्केन बनते है जिन्हें हम ईथर कहते है | यह अभिक्रिया विलियमसन संश्लेषण के नाम से जानी जाती है | यह अभिक्रिया SN2 प्रक्रम पर आधारित है | अत: प्राथमिक व द्वितीयक एल्किल हैलाइड ही यह अभिक्रिया देते है |
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4: एमिनो का संश्लेषण : एल्किल हैलाइडो को NH3 के साथ एथेनोल में उच्च दाब पर गर्म करने पर प्राथमिक द्वितीयक और तृतीयक एमिनो का मिश्रण प्राप्त होता है | यह अभिक्रिया होफमैन अमिनी अपघटन कहलाती है |
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एल्किल सायनाइड तथा एल्किल आइसो सायनाइडो का संश्लेषण
5: एल्किल सायनाइड तथा एल्किल आइसो सायनाइडो का संश्लेषण : एल्किल हैलाइडो की सोडियम या पोटेसियम सायनाइड , एल्कोहलिक विलयन से अभिक्रिया करने पर एल्किल सायनाइड बनाते है जबकि सिल्वर सायनाइड से अभिक्रिया करके आइसो सायनाइड बनाते है | इनकी सहायता से अनेक योगिको का निर्माण किया जा सकता है |
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नाइट्रोएल्केन एवं एल्किल नाइट्राईट का संश्लेषण
6: नाइट्रोएल्केन एवं एल्किल नाइट्राईट का संश्लेषण : एल्किल हैलाइड सिल्वर नाइट्राईट तथा सोडियम या पोटेसियम नाइट्राईट के साथ अभिक्रिया करके क्रमश: नाइट्रोएल्केन तथा एल्किल नाइट्राईट बनाते है |
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एस्टरो व एल्केन थायोलो और थायो ईथर का संश्लेषण
7: एस्टरो का संश्लेषण : मोनो कार्बोक्सिलिक अम्लो के सिल्वर लवणों के एल्कोहोलिक विलयनो की एल्किल हैलाइडो के साथ अभिक्रिया करने पर एस्टर प्राप्त होते है |
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8: एल्केन थायोलो का संश्लेषण : एल्किल हैलाइड पोटेसियम या सोडियम हाइड्रोजन सल्फाइड के साथ अभिक्रिया करके एल्केन थायोल बनाते है |
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9: थायो ईथर का संश्लेषण : एल्किल हैलाइड पोटेसियम या सोडियम सल्फाइड के साथ अभिक्रिया करके थायो ईथर बनाते है |
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एल्किल सल्फोनेटो का संश्लेषण और निराकरण अथवा विलोपन अभिक्रियाएँ
10: एल्किल सल्फोनेटो का संश्लेषण: एल्किल हैलाइड पोटेसियम या सोडियम सल्फाइट के साथ अभिक्रिया करके एल्किल सल्फोनेटो का निर्माण करते है |
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निराकरण अथवा विलोपन अभिक्रियाएँ : हैलो एल्केन को कास्टिक क्षारो के एल्कोहिलिक विलयन के साथ गर्म करने पर हाइड्रोजन के निराकरण अथवा विलोपन द्वारा एल्किन बनती है | इस अभिक्रिया में हैलोएल्केन का विहाइड्रोजनिकरण होता है जिससे एल्किन बनती है | चूँकि इस अभिक्रिया में HX के निराकरण में α कार्बन से हैलोजन β कार्बन से हाइड्रोजन का निराकरण होता इसलिए इसे बीटा निराकरण अभिक्रिया भी कहते है | हैलोएल्केन में विहाइड्रोजनिकरण का क्रम 3> 2> 1 होता है |
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निराकरण अभिक्रिया दो प्रकार की होती है :
अ) E1 अभिक्रिया ब)E2 अभिक्रिया
E1 और E2 अभिक्रिया
अ) E1 अभिक्रिया : इन्हें एक अणुक निराकरण अभिक्रिया के नाम से भी जाना जाता है | वे एल्किल हैलाइड जिनका आयनन सरलता से हो जाता है , E1 अभिक्रिया देते है |
जैसे :
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E1 अभिक्रिया की क्रियाविधि : यह अभिक्रिया दो पदों में सम्पन्न होती है |
प्रथम पद : एल्किल हैलाइड का आयनन होकर स्थाई कार्बोधनायन आयन बनता है |
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द्वितीय पद : एल्किल कार्बो धनायन आयन से β-H परमाणु को क्षारक माध्यम प्रोटोन के रूप में पृथक करके एल्किन बनाता है |
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इसे निम्न प्रकार से समझा जा सकता है :
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समान हैलोजन वाले एल्किन हैलाइड में E1 अभिक्रिया विधि का क्रम निम्न लिखित है :
3 > 2 > 1 > प्राथमिक एल्किल हैलाइड
जबकि समान एल्किन समूह वाले हैलोजन के सापेक्ष क्रम RI > RBr > RCl > RF होता है |
ब)E2 अभिक्रिया :इसे द्वि- अणुक निराकरण अभिक्रिया के नाम से भी जाना जाता है | वे सभी एल्किल हैलाइड जिनका आयनन सरलता से नही होता है, E2 निराकरण अभिक्रिया देते है | इसमें β-H परमाणुका क्षार द्वारा पृथककरण एवं हैलाइड आयन निराकरण एक साथ होता है |
जैसे :
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E2 अभिक्रिया की क्रियाविधि : यह अभिक्रिया एक पद में सम्पन्न होती है | जिसमें पहले भाग में मंद अभिक्रिया होती है जिसके फलस्वरूप एक संक्रमण अवस्था बनती है जो दुसरे भाग में तीर्वता से एल्किन में परिवर्तित हो जाती है | इस अभिक्रिया में β- प्रोटोन का विलोपन होता है | प्राथमिक एल्किल हैलाइड इस क्रियाविधि द्वारा विलोपन अभिक्रिया देते है |
यह अभिक्रिया SN2 अभिक्रिया के समान होती है |
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हेलोएल्केन के अपचयन जैसे ग्रिग्नार्ड अभिकर्मक का संश्लेषण
हेलोएल्केन के अपचयन : हेलोएल्केन के अपचयन से एल्केन बनते है | इनका अपचयन निम्न प्रकार से किया जा सकता है :
a) उत्प्रेर्कीय हाइड्रोजनिकरण द्वारा : इसमें उत्प्रेरक जैसे Pd की उपस्थिति में एल्किल हैलाइड का अपचयन करने पर एल्केन प्राप्त होते है |
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b) एल्किल आयोडाइडो को HI द्वारा लाल फास्फोरस की उपस्थिथि में अपचयित करने पर एल्केन प्राप्त होते है |
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c) लिथियम एलुमिनियम हाइड्राइड अथवा सोडियम बोरो हाइड्राइड से प्राप्त हाइड्राइड आयन हैलोएल्केन को एल्किन में अपचयित कर देते है |
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धातुओ के साथ अभिक्रियाएँ : हैलोएल्केन विभिन्न धातुओ के साथ अभिक्रिया करके अनेक योगिको का निर्माण करता है जैसे :
1: ग्रिग्नार्ड अभिकर्मक का संश्लेषण : इस अभिकर्मक में R-MgX में कार्बन मैगनिशियम आबंध सहसंयोजक आबंध होता है परन्तु धन विधुती मैग निशियम के इलेक्ट्रान आकर्षित करने के कारण यह आबंध अत्यंत ध्रुवीय होता है | अत: मैगनिशियम तथा हैलोजन आबंध आवश्यक रूप से आयनित होता है |
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फ्रेंकलैण्ड अभिकर्मक अथवा डाईएल्किल जिंक का संश्लेषण
2: फ्रेंकलैण्ड अभिकर्मक अथवा डाईएल्किल जिंक का संश्लेषण :
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इस chapter के सभी भाग
टेट्रा एल्किल लेड और गिलमान अभिकर्मक का संश्लेषण
3: टेट्रा एल्किल लेड का संश्लेषण :
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4: गिलमान अभिकर्मक का संश्लेषण : इसे लिथियम डाई एल्किल क्युप्रेट के नाम से भी जाना जाता है | इसे एल्किल हैलाइड से निम्न दो पदों से बनाया जाता है |
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इस अभिकर्मक की सहायता से सममित या असममित एल्केन बनाये जाते है |
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फ्रीडल - क्राफ्ट्स अभिक्रिया और मोनो हैलो एल्केनो के उपयोग
बेंजीन के साथ अभिक्रिया : मोनो हैलो एल्केन अथवा एल्किल हैलाइड बेंजीन से निर्जल एलुमिनियम क्लोराइड की उपस्थिति में अभिक्रिया करके , एल्किल बेंजीन देते है | यह अभिक्रिया फ्रीडल – क्राफ्ट्स अभिक्रिया के नाम से जानी जाती है |
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मोनो हैलो एल्केनो के उपयोग : इनका उपयोग अनेक प्रकार से किया जाता है जिनमे से कुछ निम्न है :
1: इनका उपयोग विभिन्न कार्बोनिक योगिको का संश्लेषण करने में किया जाता है |
2: ग्रिग्नार्ड अभिकर्मक जैसे अनेक अभिकर्मक के संश्लेषण में प्रयुक्त किये जाते है |
3: एथिल क्लोराइड या ब्रोमाइड का उपयोग टेट्रा एथिल लेड (TEL) के निर्माण में किया जाता है जो एक महत्वपूर्ण एंटिकनोक कंपाउंड है |
4: एल्किल सेलुलोस के निर्माण में प्रयुक्त होते है |
5: मैथिल क्लोराइड तथा एथिल क्लोराइड का उपयोग स्थानीय निश्चेतक के रूप में होता है |