Class 12th Chemistry Chapter-05 पृष्ट रसायन part -05 पृष्ट रसायन पाठ का ही एक अहम् भाग है | अगर आप इस इकाई को अच्छे से अध्ययन करना चाहते है तो हम आपसे यही अनुरोध करते है कि आप इस बहुत बड़ी इकाई को छोटे छोटे part में पढ़े | यही वजह है कि हम आपको यहाँ पर part वाइज नोट्स Provide के रहे है | इस part में जो भी महत्वपूर्ण हैडिंग है उन्हें जरूर याद करे | क्यूंकि ये ही आपको अच्छे मार्क्स प्राप्त करने में मदद करेंगी |
Table of Contents
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What We Learn In This Part
इस भाग में हम बोर्ड में पूछे गये कम से कम 3 से 5 मार्क्स का अध्ययन करेंगे | अत: आप इन्हें ध्यान से पढ़े | अगर आप कुछ समस्या महसूस करते है तो आप हमे सम्पर्क कर सकते हो | हम आपसे ये गुजारिश करते है कि आप इन महत्व पूर्ण हैडिंग को अवस्य याद करे | क्यूंकि ये वो सभी हैडिंग है जो पिछले बहुत सालो के पेपर में रिपीट हुई है | अगर आप इन्हें याद करके एग्जाम में बैठते है तो आप 90 % से अधिक अंक हासिल कर सकते है |
Class 12th Chemistry Chapter-05 पृष्ट रसायन part -05 में महत्वपूर्ण हैडिंग निम्नलिखित है :
- मिसेल का निर्माण और कोलाइडी विलयन बनाने की विधिया
- यांत्रिक परिक्षेपण विधि द्वारा, विद्युत परिक्षेपण या ब्रेडिंग आर्क विधि, पेप्टिकरण
- सघनन विधिया और रासायनिक विधिया
- कोलाइडी विलयन का शुद्धिकरण अपोहन, विद्युत अपोहन, अति सूक्ष्म निस्यपन्दन
- कोलाइडी विलयन के अभिलाक्षिनिक गुण
- हार्डी शुल्जे का नियम
- कोलाइडी का रक्षण
- स्वर्ण संख्या या सवर्णअंक
- प्रत्यास्थ जेल और अप्रत्यास्थ जेल
मिसेल का निर्माण और कोलाइडी विलयन बनाने की विधिया
मिसेल का निर्माण :- इसका निर्माण जब होता है जब साबुन को पानी में मिलाकर कपड़े पर लगी गंदगी को साफ किया जाता है, क्योंकि साबुन में दो सिरे होते है – एक जलरागी , दूसरा जलविरागी | जलविरागी भाग तेलिय गंदगी के साथ मिल करके मिसेल का निर्माण करता है और जलरागी जल डालने पर जल के साथ तेलिय गंदगी को साफ क्र देता है –
कोलाइडी विलयन बनाने की विधिया :- कोलाइडी विलयन को निम्न विधियों द्वारा बनाया जा सकता है –
1- परिक्षेपण विधियों द्वारा :- इन विधियों में बड़े आकार के कणों को विभक्त करके कोलाइडी विलयन प्राप्त किया जाता है | इसमें निम्न विधिया प्रयुक्त की जाती है –
a-यांत्रिक परिक्षेपण विधि द्वारा :- इस विधि में पदार्थ के बड़े बड़े कणों को कोलाइडी मिल में पीसकर कोलाइडी कणों के रूप में परिवर्तित कर लेते है | जिन्हें विलायक में मिलाने पर कोलाइडी विलयन बन जाता है| इस विधि का उपयोग करके छापेखाने की स्याही का , पेंट वार्निश अदि का निर्माण किया जाता है |
b – विद्युत परिक्षेपण या ब्रेडिंग आर्क विधि :- यह विद्युत परिक्षेपण विधि है जिसके द्वारा धातु का कोलाइडी विलयन प्राप्त किया जाता है | इससे कोलाइडी विलयन बनाने के लिए धातु की छड़े KOH मिले जल में रखकर इस को बर्फ में रखकर ठंडा रखते है और जैसे ही इसमें विद्युत आर्क उत्पन की जाती है धातु की वाष्प उत्पन्न होने लगती है | जो ठंडे जल में सघनित होकर कोलाइडी विलयन का निर्माण करती है |
c- पेप्टिकरण :- यह स्कन्दन के विपरीत प्रक्रिया होती है | इससे ताजा बना हुआ अवक्षेप एक तीसरे पदार्थ अर्थात पेप्टिकरण के द्वारा पुन: कोलाइडी अवस्था में परिवर्तित किया जाता है |
जैसे :- Fe(OH)3 के अवक्षेप में FeCl3 का तनु विलयन मिलाने पर कोलाइडी विलयन प्राप्त होता है |
सघनन विधिया और रासायनिक विधिया
सघनन विधिया :- इन विधियों में छोटे छोटे कणों को सघनित करके कोलाइडी विलयन प्राप्त किया जाता है | इन्हें अतिशीतलन अथवा सघनन विधि द्वारा प्राप्त किया जा सकता है |
रासायनिक विधिया :– ये अभिक्रियाओ पर आधारित विधिया है इनसे भिन्न भिन्न प्रकार के कोलाइडी विलयन प्राप्त किये जा सकते है | इनमे प्रमुख उदहारण निम्नलिखित है –
a- उभय अपघटन ;- इस विधि के द्वारा धातु सल्फाइड के कोलाइडी विलयन प्राप्त किये जाते है | इसमें ऑक्साइड विलयन में धीरे धीरे H2S गैस प्रवाहित करके कोलाइडी विलयन प्राप्त किया जाता है |
As2O3 +3H2S ——–> As2S3 + 3H2O
एक बार इन्हें भी पढ़े
कोलाइडी विलयन का शुद्धिकरण अपोहन, विद्युत अपोहन, अति सूक्ष्म निस्यपन्दन
कोलाइडी विलयन का शुद्धिकरण :- कोलाइडी विलयन में विद्युत अपघट्यो की अशुद्धिया पाई जाती है | इन अशुद्धियो को अलग करने की प्रक्रिया शुद्धिकरण कहलाती है | इसके लिए तीन विधिय अपनाई जाती है –
- अपोहन
- विद्युत अपोहन
- अति सूक्ष्म निस्यपन्दन
अपोहन :- इस प्रक्रिया में कोलाइडी कणों में अशुद्धिय दूर करने के लिए कोलाइडी विलयन को जंतु झिल्ली की थैली में भरकर जल में लटका देते है | जिसके फलस्वरूप अशुधिया जल में विसरित हो जाती है|
विद्युत अपोहन :- अपोहन की प्रकिर्या धीमी गति से होती है | यदि जंतु थैली के दोनों ओर इलेक्ट्रोड लगा दे तो यह प्रक्रिया तेजी से होने लगती है | इसी कारण इस प्रकिर्या को विद्युत अपोहन कहते है |
अति सूक्ष्म निस्यपन्दन :- साधारण फ़िल्टर पेपर के छिद्र बड़े होते है जिससे होकर कोलाइडी कण गुजर जाते है | इसलिए अति सूक्ष्म फ़िल्टर पेपर से कोलाइडी कण बहार नही जा पाते है अत: इससे कोलाइडी विलयन को छानकर अशुद्धिया दूर की जा सकती है | इस प्रक्रिया को अति सूक्ष्म निस्यपन्दन कहते है |
कोलाइडी विलयन के अभिलाक्षिनिक गुण
कोलाइडी विलयन के अभिलाक्षिनिक गुण :- इनके गुणों का अध्ययन निम्नलिखित प्रकार से किया जाता है –
- भोतिक गुण
- अणु संख्य गुण
- प्रकाशिक गुण
- गतिज गुण
- विद्युत गुण
भोतिक गुण :- इनका आकार एक नैनो मीटर से लेकर एक हजार नैनो मीटर के मध्य होता है | जबकि इनका रंग सामान्यत: विलय के कणों की तरंग धर्य पर निर्भर करता है | ये सामान्यत: विषमांगी प्रक्रति के होते है | इनका पृष्ठीय क्षेत्रफल अधिक होता है | इसलिए इनकी अधिशोषण क्षमता अधिक होती है| इनका स्थायित्व सामान्यत: कम होता है |
अणुसंख्य गुण :- ये गुण विलय के अनुओ की संख्या पर निर्भर करते है | इसलिए इन्हें अणु संख्य गुण कहते है | जैसे :- क्वथनांक का उन्नयन, हिमांक का अवनमन, प्रकाशीय गुना अदि |
प्रकाशिक गुण :- इसमें हम केवल एक गुण पढ़ते है जो निम्न है –
टिंडल प्रभाव :- सन 1869 में टिंडल नामक वैज्ञानिक ने यह अनुभव किया की जब प्रकाश की किरणों को कोलाइडी विलयन में से प्रवाहित करते है तो प्रकाश की किरनो का मार्ग दृश्य जाता है | इस प्रकार के प्रकाशीय प्रभाव को टिंडल प्रभाव कहते है |
उपयोग :- इसका उपयोग कोलाइडी और वास्तविक विलयन में विभेद करने के लिए किया जाता है
गतिज गुण :-इसके अंतरगत हम केवल एक गुण पढ़ेंगे जो निम्न है –
ब्राऊनी गति :- कोलाइडी कणों का तीर्व गति से आगे पीछे टेढ़ी मेढ़ी गति करना ब्राऊनी गति कहलाता है | इस गति को सर्वप्रथम रोबर्ट ब्राउन ने देखा था |
विद्युत गुण :- कोलाइडी कणों का विद्युत क्षेत्र में विपरीत एलेक्ट्रोडो की ओर गति करने की क्रिया को विद्युत कण संचलन या धन कण संचलन कहते है |
कुछ विद्युत आवेशि कोलाइडी कण :–
विद्युत कण संचालन के उपयोग :-
इसका उपयोग निम्न प्रकार से किया जाता है –
- कोलाइडी कणों पर आवेश ज्ञात करने में
- चिमनी गैसों से धुआ हटाकर प्रदुष्ण रोकने में
- गैस के कणों को दुर करने में
स्कंदन, हार्डी शुल्जे का नियम और कोलाइडी का रक्षण
स्कंदन :- कोलाइडी कणों का आनावेशित अथवा उदासीन होकर अवक्षेप हो जाना स्कंदन कहलाता है | यह निम्न विधियों द्वारा किया जा सकता है –
1- कव्थनांक द्वारा ;- कुछ कोलाइडी निकायों को उबनले से उनके कोलाइडी कण स्कन्दित हो जाते है | जैसे :- मक्खन को गर्म करने पर , तेल व जल को गर्म करने पर आदि |
2- ठंडा करके :- कुछ कोलाइडी निकायो बहुत अधिक ठंडा करने पर स्कन्दित हो जाते है | जैसे – दूध |
3- निरंतर अपोहन करके :- बार बार लम्बे समय तक अपोहन करके कोलाइडी निकाय स्कन्दित हो जाता है |
4- विद्युत अपघट्य मिलाने पर :- जब किसी कोलाइडी विलयन में किसी विद्युत अपघट्य को अधिक्य में मिलाते है तो परिक्षेपण माध्यम में परिक्षिप्त कोलाइडी कण उदासीन होकर अव्क्षेपित हो जाते है | इस प्रकार इनका स्कंदन हो जाता है | जैसे :- As2S3 के कोलाइडी विलयन में BaCl2 मिलाने पर |
हार्डी शुल्जे का नियम :- इस नियम के अनुसार निम्न लिखित अवधारणाये है –
1- किसी कोलाइडी विलयन में विद्युत अपघट्य के विलयन द्वारा स्कन्दन में वह आयन प्रभावी होता है | जो कोलाइडी कणों के विपरीत आवेश रखता हो | इस आयन को प्रभावी आयन कहते है |
2- किसी विद्युत अपघट्य की स्कन्दन शक्ति प्रभावि आयन की संयोजकता पर निर्भर करती है| प्रभावी आयन की संयोजकता जितनी अधिक होती है उतनी ही अधिक उसकी स्कन्दन शक्ति होती है |
3- किसी विद्युत अपघट्य की स्कन्दन शक्ति उसके वर्णनांक मान के पदों के रूप में व्यक्त की जाती है | इसका मान जितना कम होता है उतनी ही स्कन्दन शक्ति कम होती है |
4- विद्युत अपघट्य की स्कन्दन शक्ति कोलाइडी विलयन की प्रक्रति पर निर्भर करती है |
#:- कोलाइडी का रक्षण :- कोलाइडी विलयन के स्कन्दन को रोकने के लिए प्रयुक्त द्रव्य स्नेही कोलाइडी को रक्षी कोलाइडी कहते है और यह प्रक्रिया कोलाइडी का रक्षण कहलाती है | जैसे – काली स्याही बनाते समय इसमें रक्षी कोलाइडी के रूप में बबूल का गोंड मिलाया जाता है |
स्वर्ण संख्या या सवर्णअंक, प्रत्यास्थ जेल और अप्रत्यास्थ जेल
स्वर्ण संख्या या सवर्णअंक :- किसी रक्षी कोलाइडी की मिली ग्राम में वह मात्रा जो 10 मिली गोल्ड के कोलाइडी विलयन में मिलाने पर उसका 10 प्रतिशत सांद्रता वाले NaCl के एक मिली विलयन द्वारा स्कन्दन रोकती है उस रक्षी कोलाइडी की स्वर्ण संख्या कहलाती है | जैसी – हिमोग्लोबिन की स्वर्ण संख्या का मान 0.03 है |
जेल :- यदि परिक्षेपण माध्यम ठोस हो तथा परिक्षिप्त प्रवस्था द्रव्य हो तो इन दोनों अवस्थाओ से प्राप्त कोलाइडी विलयन को जेल कहते है | जैसे :- जिलेटिन के गर्म विलयन को ठंडा करने पर प्राप्त विलयन |
ये दो प्रकार के होते है –
1- प्रत्यास्थ जेल 2- अप्रत्यास्थ जेल
वे जेल जिन पर बल लगाने से वे आकार परिवर्तित क्र लेते है परन्तु बल हटाने पर अपनी पूर्व अवस्था में आ जाते है प्रत्यास्थ जेल कहलाते है | जैसे – जिलेटिन , स्टार्च साबुन आदि |
जबकि वे जेल जिन पर बल लगाने से आकार में कोई परिवर्तन नही होता है अप्रत्यास्थ जेल कहलाते है | जैसे – जमा हुआ शहद |
जेल के गुण :- इनके प्रमुख गुण निम्नलिखित है –
1- पूर्णता निर्जलीकर्त प्रत्यास्थ जेल को जल में डालने पर वे पुन: जेल उत्पन्न कर सकते है जबकि अप्रत्यास्थ जेल नही |
2-अपूर्ण निर्जलिक्र्त अप्रत्यास्थ जेल को विलायक में डालने पर उसका आयतन बढ़ जाता है |
3- बहुत से अकार्बनिक जेल रखने पर सिकुड़ जाते है इसे संकुचन कहते है |
कोलाइडी अवस्था के अनुप्रयोग :– कोलाइडी अवस्था का जीवन में अत्यंत महत्व है वास्तविकता तो यह है की हमारा जीवन इन्ही के ऊपर निर्भर है जैसे – भोजन पाचक एंजाइम अदि कोलाइडी है |
इनके अनुप्रयोग निम्नलिखित है –
- कोलाइडी औषधियों के रूप में
- धुएं के अवक्षेपण में
- मल से गंदगी दूर करने में
- रबर प्लेटिंग में
- जल के शुद्धिकरण में
The End Chapter Completed