Class 10th Science Chapter-07 नियंत्रण एवं समन्वय part – 01 नियंत्रण एवं समन्वय का ही एक अहम् भाग है | अगर आप इस इकाई अथवा पाठ को अच्छे से अध्ययन करना चाहते है तो हम आपसे यही अनुरोध करते है कि आप इस बहुत बड़ी इकाई को छोटे छोटे part में पढ़े | यही वजह है कि हम आपको यहाँ पर part वाइज नोट्स Provide कर रहे है | इस part में जो भी महत्वपूर्ण हैडिंग है उन्हें जरूर याद करे | क्यूंकि ये ही आपको अच्छे मार्क्स प्राप्त करने में मदद करेंगी |
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What We Learn In This Part
इस भाग में हम बोर्ड में पूछे गये कम से कम 3 से 5 मार्क्स का अध्ययन करेंगे | अत: आप इन्हें ध्यान से पढ़े | अगर आप कुछ समस्या महसूस करते है तो आप हमे सम्पर्क कर सकते हो और आप Ask Question पर क्लिक करके प्रश्न भी पूछ सतके हो | हम आपसे ये गुजारिश करते है कि आप इन महत्वपूर्ण हैडिंग को अवस्य याद करेंगे | क्यूंकि ये वो सभी हैडिंग है जो पिछले बहुत सालो के पेपर में रिपीट हुई है | अगर आप इन्हें याद करके एग्जाम में बैठते है तो आप 90 % से अधिक अंक हासिल कर सकते है |
Class 10th Science Chapter-07 नियंत्रण एवं समन्वय part – 01 में महत्वपूर्ण Headings निम्नलिखित है | इन्हें अच्छे से याद करे | ये आपको अच्छे अंक दिलाने में मदद करेगी :
- तंत्रिका तंत्र और जंतु तंत्रिका तंत्र
- तंत्रिका कोशिका या न्यूरोन
- प्रतिवर्ती क्रिया और प्रतिवर्ती चाप
तंत्रिका तंत्र और जंतु तंत्रिका तंत्र
तंत्रिका तंत्र : अधिकांश गतियां पर्यावरण में होने वाले परिवर्तन की अनुक्रिया के कारण होती हैं। इन्हे सावधानी पूर्वक नियंत्रित किया जा सकता हैं। इन सभी प्रकार की गतियो पर नियंत्रण एवं समन्वय के लिए जीवो में एक तंत्र होता है जिसे तंत्रिका तंत्र कहते हैं।
जंतु तंत्रिका तंत्र : जंतुओ में नियंत्रण एवं समन्वय का कार्य तांत्रिका एवं पेशी ऊतकों द्वारा किया जाता है। हमारे पर्यावरण में होने वाले सभी परिवर्तनों का पता तंत्रिका कोशिकाओं के विशिष्ट सिरों द्वारा लगाया जाता है जिन्हें ग्राही कहते हैं। यह ग्राही हमारी ज्ञानेंद्रियो में स्थित होते हैं जैसे : आंख, आंतरिक कर्ण , नाक, जिह्वा, त्वचा आदि।
एक बार इन्हें जरूर पढ़े
तंत्रिका कोशिका या न्यूरोन
तंत्रिका कोशिका या न्यूरोन : तंत्रिका तंत्र की इकाई तंत्रिका कोशिका या न्यूरोन कहलाती है। एक तंत्रिका कोशिका के दो भाग होते हैं :
- कोशिका काय
- कोशिका प्रवर्ध
कोशिका काय में केंद्रक एवं अन्य कोशिकांग होते हैं । कोशिका काय से दो प्रकार के प्रवर्ध निकलते हैं ।
- छोटे-छोटे प्रवर्ध (द्रुमिका)
- एक बड़ा प्रवर्ध (तांत्रिकाक्ष)
कई छोटे-छोटे प्रवर्ध द्रुमिका कहलाते हैं, जो आवेग को कोशिका काय की तरफ लाते हैं जबकि एक बड़ा प्रवर्ध तांत्रिकाक्ष कहलाता है जो आवेग को कोशिका से दूर लेकर जाता है।
तांत्रिकाक्ष का अंतिम सिरा कई छोटी-छोटी शाखोंओ में बंट जाता है जिनके सिरे चौड़े घूंडी जैसे होते हैं जिन्हें सिनेप्टिक नोड कहते हैं।
पर्यावरण में होने वाले परिवर्तन की सूचना एक तंत्रिका कोशिका के द्रुमाकृतिक सिरे द्वारा ग्रहण की जाती है और एक रासायनिक क्रिया द्वारा यह एक विद्युत आवेग पैदा करती है। यह विद्युत आवेग द्रुमिका से कोशिका काय तक एवं वहां से तांत्रिकाक्ष के अंतिम सिरे तक पहुंच जाता है।
सिनेप्टिक नोड में यह आवेग कुछ रसायनों का स्त्राव करता है जो रिक्त स्थान सिनेप्टिक दरार को पार कर अगली तंत्रिका कोशिका के द्रुमिका में इसी तरह का आवेग उत्पन्न करता है। इस प्रकार दो तंत्रिका कोशिकाओं के मध्य क्रियात्मक संबंध बनते हैं जिन्हें सिनेप्स कहते हैं।
प्रतिवर्ती क्रिया और प्रतिवर्ती चाप
प्रतिवर्ती क्रिया : पर्यावरण में किसी घटना की अनुक्रिया के फल स्वरुप अचानक होने वाली क्रिया को प्रतिवर्ती क्रिया कहते हैं। जैसे- कांटा चूभते ही पैर का अपने स्थान से हट जाना, गर्म तवे पर हाथ लगते ही हाथ का है हट जाना , भूखा होने पर भोजन देखते ही मुंह में पानी आना आदि।
इन क्रियाओ का समन्वय मेरुरज्जू से होता है। यहां पर संवेदी तंत्रिका द्वारा लाई गई सूचना तुरंत प्रेरक तांत्रिका द्वारा पेशियो तक पहुंचा दी जाती है । जिससे पेशियां तुरंत गति करते हैं और हमें तुरंत होने वाले हानि से बचा लेती हैं।
प्रतिवर्ती चाप : संवेदी तंत्रिका मेरुरज्जु एवं प्रेरक तांत्रिका से मिलकर बने इस संबंध को प्रतिवर्ती चाप कहते हैं। यद्यपि इस क्रिया की सूचना मस्तिष्क को भी दी जाती है जिन जीवो में मस्तिष्क कम विकसित होते हैं उनमें प्रतिवर्ती चाप एक दक्ष कार्य प्रणाली है।