Excellent Shiksha Class-10th,अनुवांशिकता एवं जैव विकास Class 10th Science Chapter-09 अनुवांशिकता एवं जैव विकास part – 03

Class 10th Science Chapter-09 अनुवांशिकता एवं जैव विकास part – 03


Class 10th Science Chapter-09 अनुवांशिकता एवं जैव विकास part – 03

Class 10th Science Chapter-09 अनुवांशिकता एवं जैव विकास part – 03 अनुवांशिकता एवं जैव विकास  का ही एक अहम् भाग है | अगर आप इस इकाई अथवा पाठ को अच्छे से अध्ययन करना चाहते है तो हम आपसे यही अनुरोध करते है कि आप इस बहुत बड़ी इकाई को छोटे छोटे part में पढ़े | यही वजह है कि हम आपको यहाँ पर part वाइज नोट्स Provide कर रहे है | इस part में जो भी महत्वपूर्ण हैडिंग है उन्हें जरूर याद करे | क्यूंकि ये ही आपको अच्छे मार्क्स प्राप्त करने में मदद करेंगी |

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What We Learn In This Part

इस भाग में हम बोर्ड में पूछे गये कम से कम 3 से 5 मार्क्स का अध्ययन करेंगे | अत: आप इन्हें ध्यान से पढ़े | अगर आप कुछ समस्या महसूस करते है तो आप हमे सम्पर्क कर सकते हो और आप Ask Question पर क्लिक करके प्रश्न भी पूछ सतके हो | हम आपसे ये गुजारिश करते है कि आप इन महत्वपूर्ण हैडिंग को अवस्य याद करेंगे  | क्यूंकि ये वो सभी हैडिंग है जो पिछले बहुत सालो के पेपर में रिपीट हुई है | अगर आप इन्हें याद करके एग्जाम में बैठते है तो आप 90 % से अधिक अंक हासिल कर सकते है |

Class 10th Science Chapter-09 अनुवांशिकता एवं जैव विकास part – 03 में महत्वपूर्ण  Headings निम्नलिखित है | इन्हें अच्छे से याद करे | ये आपको अच्छे अंक दिलाने में मदद करेगी: 

  1. लिंग निर्धारण
  2. विकास और एक दृष्टांत
  3. उपार्जित एवं अनुवांशिक लक्षण
Class 10th Science Chapter-09 अनुवांशिकता एवं जैव विकास part – 03

मानव में लिंग निर्धारण

लिंग निर्धारण : कम विकसित प्राणियों में लिंग निर्धारण कई कारको पर निर्भर करते हैं जैसे कुछ जीवो में ताप पर निर्भर करता है इसका एक उदाहरण घोंघा है जो ताप अनुसार अपना लिंग बदल सकता है। इनके ये गुण अनुवांशिक नही होते है। परंतु मनुष्य में लिंग निर्धारण अनुवांशिक होता है।

मनुष्य की कोशिकाओं में 22 जोड़े गुणसूत्र एक समान होते हैं जिन्हें कायिक गुणसूत्र कहते हैं तथा एक जोड़ा गुणसूत्र नर एवं मादा में भिन्न-भिन्न होता है जिसे लिंग गुणसूत्र कहते हैं।

मदर में इस जोड़े के दोनों गुणसूत्र समान होते हैं जिन्हें XX कहते हैं जबकि पुरुष में एक गुणसूत्र थोड़ा छोटा होता है जिसे Y दूसरे गुणसूत्र को X कहते हैं। इस प्रकार पुरुष में XY गुणसूत्र होते हैं।

युग्मक बनते समय पुरुष में दो प्रकार के स्पर्म शुक्राणु बनते हैं, X गुणसूत्र वाले और Y गुणसूत्र वाले जबकि स्त्री में एक ही प्रकार के X गुणसूत्र वाले अंडे बनते हैं। यदि अंडों से पुरुष का X गुणसूत्र वाला शुक्राणु मिलता है तो XX क्रम बनता है जिससे लडकी होती है। यदि अंडो से पुरुष का Y गुणसूत्र वाला शुक्राणु मिलता है तो XY क्रम बनता है जिससे लड़का होता है ।

लिंग निर्धारण

विकास और एक दृष्टांत

विकास और एक दृष्टांत : एक जाति के अस्तित्व एवं विकास को कई कारक प्रभावित करते हैं। जिसे हम निम्न उदाहरण से समझ सकते हैं :

जैसे लाल भृंगो का एक समूह हरी पत्ती वाली झाड़ी पर रहता है, जो लैंगिक जनन से वृद्धि करते रहते हैं। विभिन्नता उत्पन्न होने के कारण इनमें एक हरा भृंग उत्पन्न हो जाता हैं। लाल एवं हर भृंग सभी संतान उत्पत्ति करते हैं। कौए लाल भृंग को खा जाते हैं परंतु हरे भृंग हरी पत्तेदार झाड़ियां में दिखाई नहीं देते। अत:  हरे भृंगों की संख्या बढ़ती जाएगी। यह प्रकृति चयन है।

दूसरी स्थिति में लाल भृंगो में एक नीला भृंग उत्पन्न हो जाता हैं। कौए लाल एवं नीले सभी भृंगी को खा जाते हैं। यह धीरे-धीरे अपनी संतान उत्पत्ति करते हैं तभी एक हाथी वहां जाकर झाड़ियां रौंद देता है। सभी लाल भृंग मर जाते हैं एवं कुछ नीले भृंग बच जाते हैं। अतः धीरे-धीरे समष्टि नीले भृंगो की हो जाती है। यह दुर्घटना प्रभाव का सिद्धांत है । जो बिना किसी अनुकूलन के भी विभिन्नता उत्पन्न करता हैं।

तीसरी स्थिति में अकाल के कारण झाड़ियां पर पत्ते कम पड़ जाते हैं। भृंग भी अल्प पोषित होकर मरने लगते हैं। कुछ भृंग स्थिति को सहन कर लेते हैं तथा अनुकूल समय पर जब झाड़ियां दोबारा हरी हो जाती है तो यह भृंग पुन: अपनी समष्टि तैयार करते हैं। जिसमें कम पोषण में भी जिंदा रहने की क्षमता होती है।

अत: स्पष्ट है कि यह तीनों कारक जीवो एवं उनकी नई जातियों के विकास को बताते है।

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उपार्जित एवं अनुवांशिक लक्षण

उपार्जित एवं अनुवांशिक लक्षण : वे लक्षण जिन्हें कोई जीव अपने संपूर्ण जीवन काल में धीरे-धीरे अर्जित करता है उपार्जित लक्षण कहलाते हैं। इन लक्षणों का वंशागत होना आवश्यक नहीं है।

इसके विपरीत ऐसे लक्षण जो संतान को अपने माता-पिता से प्राप्त होते हैं तथा फिर अगली पीढ़ी में चले जाते हैं अनुवांशिक लक्षण कहलाते हैं।

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