Excellent Shiksha class - 12th,ठोस अवस्था Class 12th Chemistry Chapter-01 (ठोस अवस्था) part -04

Class 12th Chemistry Chapter-01 (ठोस अवस्था) part -04


Class 12th Chemistry Chapter-01 (ठोस अवस्था) part -04

Class 12th Chemistry Chapter-01 ठोस अवस्था part – 04 ठोस अवस्था का ही एक अहम् भाग है | अगर आप इस इकाई अथवा पाठ को अच्छे से अध्ययन करना चाहते है तो हम आपसे यही अनुरोध करते है कि आप इस बहुत बड़ी इकाई को छोटे छोटे part में पढ़े | यही वजह है कि हम आपको यहाँ पर part वाइज नोट्स Provide कर रहे है | इस part में जो भी महत्वपूर्ण हैडिंग है उन्हें जरूर याद करे | क्यूंकि ये ही आपको अच्छे मार्क्स प्राप्त करने में मदद करेंगी |

Table of Contents

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What We Learn In This Part

इस भाग में हम बोर्ड में पूछे गये कम से कम 3 से 5 मार्क्स का अध्ययन करेंगे | अत: आप इन्हें ध्यान से पढ़े | अगर आप कुछ समस्या महसूस करते है तो आप हमे सम्पर्क कर सकते हो और आप Ask Question पर क्लिक करके प्रश्न भी पूछ सतके हो | हम आपसे ये गुजारिश करते है कि आप इन महत्वपूर्ण हैडिंग को अवस्य याद करेंगे  | क्यूंकि ये वो सभी हैडिंग है जो पिछले बहुत सालो के पेपर में रिपीट हुई है | अगर आप इन्हें याद करके एग्जाम में बैठते है तो आप 90 % से अधिक अंक हासिल कर सकते है |

Class 12th Chemistry Chapter-01 ठोस अवस्था part – 04 में महत्वपूर्ण  Headings निम्नलिखित है | इन्हें अच्छे से याद करे | ये आपको अच्छे अंक दिलाने में मदद करेगी: 

  1. ठोसो में अपुर्णताये और क्रिष्टल दोष के प्रकार
  2. बिंदु दोष एवं इसके के प्रकार और स्टाचियोमिट्रिक दोष
  3. रिक्तिका और अन्तराकाशी दोष
  4. आयनिक योगिको में दोष जैसे : फ्रेंकल दोष , शोट्की दोष
  5. अशुधि दोष और नॉन स्टाचियोमिट्रिक दोष
  6. धातु अधिक्य दोष और धातु न्यूनता दोष और इनके प्रभाव
  7. विद्युतीय गुण और चालक, विद्युत् रोधी, अर्धचालक की परिभाषा
  8. उर्जा बैंड एवं इसके प्रकार : संयोजी बैंड, चालन बैंड और उर्जा अन्तराल
  9. अर्ध चालकएवं इसके प्रकार : निज अर्ध चालक, बाह्य अर्धचालक, n और p प्रकार के अर्धचालक
  10. पदार्थो में चुम्कीय गुण एवं इसके प्रकार और इसके आधार पर पदार्थ
Class 12th Chemistry Chapter-01 (ठोस अवस्था) part -04

ठोसो में अपुर्णताये और क्रिष्टल दोष के प्रकार

ठोसो में अपुर्णताये :- किसी क्रिष्टल ,ए से सही क्रम में उपस्थित अवयवी कण का प्रथक होना अथवा सही क्रम में उपस्थित न होना दोष कहलाता है इसे क्रिष्टल दोष और ठोसो में अपूर्णता भी कहते है |

क्रिष्टल दोष के प्रकार :- 
 क्रिष्टल दोष सामन्यत: दो प्रकार का होता है :- 1 ) बिंदु दोष  2) रे खिय दोष |

बिंदु दोष एवं इसके के प्रकार और स्टाचियोमिट्रिक दोष

बिंदु दोष :- किसी क्रिष्ट्लीय पदार्थ में से किसी बिंदु के चारो और आदर्श व्यवस्था से उत्पन विचलन बिंदु दोष कहलाता है |
रेखीय दोष :- क्रिष्टल जालक की पूर्ण पंक्तियों में उपस्थित आदर्श विन्याश से उपस्थित विचलन रेखीय दोष कहलाता है |

बिंदु दोष के प्रकार :– बिंदु दोष तीन वर्गो में बनता गया है –
1:- स्टाचियोमिट्रिक दोष   2:- अशुधता दोष    3:- नॉन  स्टाचियोमिट्रिक दोष |
 
1:- स्टाचियोमिट्रिक दोष:– ये वे बिंदु दोष है जो क्रिष्टल की  स्टाचियोमिट्रि को प्रभावित नही करते है इनमे धन आयन  तथा ऋण आयन का  वही  अनुपात रहता है जो क्रिष्टल के अणु सूत्र द्वारा प्रदर्शित किया जाता है इन्हें अंतर या उस्मा गतिक दोष भी कहते है | 

ये सामन्यत: दो प्रकार के होते है –
1:- रिक्तिका दोष      2:- अन्तराकाशी दोष |

रिक्तिका और अन्तराकाशी दोष

रिक्तिका दोष :- जब क्रिष्टल जालक के कुछ स्थल खली होते है तो उस दोष को रिक्तिका दोष कहते है इसके कारण पदार्थ का घनत्व कम हो जाता है इसका कारण यह है की इस दोष में पदार्थ का द्रव्यमान कम हो जाता है परन्तु आयतन वही  रहता है यह दोष तब भी उत्पन हो जाता  है जब पदार्थ को गर्म करते है |

 अन्तराकाशी दोष :- जब क्रिष्टल में अवयवी कण  अन्तराकाशी स्थल ग्रहण कर  लेते है तो उसे  अन्तराकाशी दोष कहते है इस दोष के कारण क्रिष्टल का घनत्व बढ़ जाता है इसका कारण यह है की इस दोष में द्रव्यमान बढ़ जाता है परन्तु आयतन स्थिर रहता है |

आयनिक योगिको में दोष जैसे : फ्रेंकल दोष , शोट्की दोष

आयनिक योगिको में दोष :- आयनिक योगिको में रिक्तिका दोष या अन्तराकाशी दोष नही पाए जाते है इन्ही दोषों के समान इनमे फ्रेंकल दोष और शोटकी दोष पाए जाते है |
 
1:- फ्रेंकल दोष :- इसमें छोटे आयन सामान्यत: धन आयन अपनी साम्य स्थिति  से हटकर अन्य स्थान पर चले जाते है  इससे इनकी मूल स्थति पर रिक्ति उत्पन हो जाती है तथा अन्तराकाशी  स्थिति ग्रहण कर लेते है फ्रेंकल दोष रिक्तिका दोष तथा अन्तराकाशी दोष का एक युग्म है |
 
 इस दोष को विस्थापन प्रभाव भी कहते है क्योंकि इस दोष में क्रिष्टल का कोई आयन प्रथक नही होता  इस कारण इस दोष में ठोस का घनत्व नही बदलता  फ्रेंकल दोष वे योगिक प्रदर्शित करते है जिनकी उप्सह्सयोजन संख्या कम होती है जैसे :- ZnS ,  AgCl   , AgBr  , AgI  आदि |

2:-शोट्की दोष :- जिस  दोष में A + B + प्रकार के आयनिक ठोस में समान संख्या में धन आयन तथा ऋण आयन लुप्त हो जाते है  वह शोट्की दोष कहलाता है इस दोष में पदार्थ का घनत्व कम हो जाता है क्योंकि आयनों की संख्या घट जाती है | जिससे द्रव्यमान में कमी आ जाती है जबकि आयतन स्थिर रहता है  जैसे :-  NaCl , KCl CsCl   AgBr   आदि |

 नोट :- AgBr फ्रेंकल तथा शोट्की दनो दोष प्रदर्शित करता है |

अशुधि दोष और नॉन स्टाचियोमिट्रिक दोष

अशुधि दोष :-ये दोष क्रिष्टल में कुछ बाहरी पदार्थ की उपस्थिति के कारण उत्पन होते है जैसे अपमिश्रण  आदि  
अपमिश्रण या डोपिंग :- किसी क्रिष्ट्लीय पदार्थ में बाह्य अशुधि की मिलावट करके क्रिष्टल के गुणों को बदलने की प्रक्रिया अपमिश्रण या डोपिंग कहलाती है |
 
नॉन स्टाचियो मिट्रिक दोष :- ये वे दोष है जो क्रिष्टल की स्टाचियो मिट्री को प्रभावोत करते है इन योगिको को धन अयनो तथा ऋण आयनों की संख्या का अनुपात आदर्श रासायनिक सूत्र की संगत नही होता यह दोष ताप  बढ़ाने पर बढ़ता है छिद्रों की उपस्थिति के कारण क्रिष्टल का घनत्व कम हो जाता है ये दोष दो प्रकार के होते है |

1:- धातु अधिक्य दोष  2:- धातु न्यूनता दोष |

धातु अधिक्य दोष और धातु न्यूनता दोष और इनके प्रभाव

धातु अधिक्य दोष :– इस दोष में एक ऋण आयन जालक में से अपनी मूल स्थिति से हट जाता है इससे धातु धन आयनों की अधिकता हो जाती है ऋण आयन द्वारा उत्पन रिक्ति को इलेक्ट्रान ग्रहण कर  लेता है  ताकि वद्युत उदासीनता बनी रहे  जैसे :- NaCl , में Cl  आयन के निकल जाने से उत्पन रिक्ति को सोडियम द्वारा दिए गये इलेक्ट्रान से भर  दिया जाता है | 
 F केंद्र :- युग्मित एलेक्ट्रोनो द्वारा भरी गयी ऋण आयनिक रिक्तियों को F केंद्र कहते है इसके कारण क्रिष्टल का रंग बदल जाता है जैसे :- 

1:-NaCl के क्रिष्टल को गर्म करने पर उसका रंग पिला हो जाता है | 
इसी प्रकार KCl  के  क्रिष्टल को गर्म करने पर उसका रंग बैंगनी  हो जाता है  आदि |

 2:- धातु न्यूनता दोष :- यह दोष तभी उत्पन होता है जब धातु परिवर्ती संयोजकता प्रदर्शित करती है यह दोष FeO , FeS , NiO  आदि योगिक प्रदर्शित करते है ये योगिक विद्युत का चालन करते है |

विद्युतीय गुण और चालक, विद्युत् रोधी, अर्धचालक की परिभाषा

विद्युतीय गुण :- चालकता के आधार पर ठोसो को तीन भागो में बांटा जाता है :-
1:- चालक   2:- विद्युत् रोधी  3:- अर्धचालक |

1:- चालक :– वे ठोस जिनकी चालक ताए 10 की घात 4 से लेकर 10 की घात 7 प्रति ओम प्रति मीटर होती है चालक कहलाते है जैसे – Fe , Cu , Ag  आदि |

2:- विद्युत् रोधी:- वे ठोस जिनकी चालक ताए 10 की घात -20  से लेकर  10 की घात -10 प्रति ओम प्रति मीटर होती है चालक कहलाते है जैसे – लकड़ी ,रबर, प्लास्टिक   आदि |

 3:- अर्धचालक :- वे ठोस जिनकी चालक ताए 10 की घात -6  से लेकर  10 की घात +4  प्रति ओम प्रति मीटर होती है चालक कहलाते है जैसे – सिलिकन ,जर्मेनियम    आदि |

उर्जा बैंड एवं इसके प्रकार : संयोजी बैंड, चालन बैंड और उर्जा अन्तराल

 उर्जा बैंड :- ये सामन्यत: तीन प्रकार के होते है –
1:- संयोजी बैंड   2:- चालन बैंड   3:- उर्जा अन्तराल |

1:- संयोजी बैंड :- वे बैंड जो कम उर्जा वाले परमाण्विक कक्षको द्वरा बनते है संयोजी बैंड कहलाते है इसमें संयोजी इलेक्ट्रान उपस्थित होते है |
 
 2:- चालन बैंड  :-ये बैंड खली अथवा आंशिक रूप से भरे होते हुए अधिक उर्जा  वाले कक्षको द्वारा बनते है |

 3:- उर्जा अन्तराल :- यह संयोजी और चालन बैंड के मध्य उपस्थित होता है | 
Class 12th Chemistry Chapter-01 (ठोस अवस्था) part -04

अर्ध चालकएवं इसके प्रकार : निज अर्ध चालक, बाह्य अर्धचालक, n और p प्रकार के अर्ध चालक

अर्ध चालक के प्रकार :- ये सामन्यत: दो प्रकार के होते है – 
1:- निज अर्ध चालक   2:- बाह्य अर्धचालक |

1:- निज अर्ध चालक  :- वे अर्धचालक जिनमे किसी भी प्रकार की अशुधि का अपमिश्रण नही होता है निज अर्धचालक कहलाते है 1 जैसे :- सिलिकॉन , जर्मेनियम आदि 

  2:- बाह्य अर्धचालक :- वे अर्धचालक जिनमे चालकता को बढ़ाने के लिए  अशुधि का अपमिश्रण किया जाता है बाह्य अर्धचालक कहलाते है 1 ये सामान्यत: दो प्रकार के होते है – 
1:- n प्रकार के अर्धचालक      2:- p प्रकार के अर्ध चालक  |

1:- n प्रकार के अर्धचालक:-  वे बाह्य अर्ध चालक जिनमे वर्ग 15 के तत्व का अपमिश्रण किया जाता है जिसके कारन इनमे कार्बन परमाणु की  संयोजकता पूर्ण होने के बाद एक इलेक्ट्रान शेष रह जाती है जो elctron कहलाता  है  n  प्रकार के अर्ध चालक कहलाते है जैसे :- AsGe आदि |

 2:- p प्रकार के अर्धचालक :- वे बाह्य अर्ध चालक जिनमे वर्ग 13 के तत्व का अपमिश्रण किया जाता है जिसके कारन इनमे कार्बन परमाणु की एक संयोजकता शेष रह जाती है जो कोटर कहलाती है  p प्रकार के अर्ध चालक कहलाते है जैसे :- GaGe  आदि |

नोट :- ताप का प्रभाव :- चालक में ताप बढ़ाने पर चालक की चालकता का मन घट जाता है जबकि अर्ध चालक में ताप बढ़ाने पर चालक की चालकता का मन भाद जाता है 1 

पदार्थो में चुम्कीय गुण एवं इसके प्रकार और इसके आधार पर पदार्थ

पदार्थो में चुम्कीय गुण :- सभी पदार्थो के साथ कुछ चुम्बकीय गुण सम्बन्धित होते है इनकी उत्त्पत्ति एलेक्ट्रोनो के कारण होती है  इन्हें सामन्यत: 5 भागो में बांटा गया है –

1:- प्रति  चुम्बकीय पदार्थ :- वे पदार्थ जिनमेअ  युग्मित इलेक्ट्रान उपस्थित नही होते है और ये चुम्बकीय क्षेत्र में विपरीत दिशा में दुर्बलता से गति करते है जैसे :- NaCl , TiO , C6 H6  V2O5   आदि |

2:- अनु चुम्बकीय पदार्थ :- वे पदार्थ जिनमे अयुग्मित इलेक्ट्रान उपस्थित होते है अनु चुम्बकीय पदार्थ कहलाते है और पदार्थो का यह गुण अनुचुम्बक्त्व कहलाता है  जैसे :- O2 ,Cu+ Fe 3+  आदि |

3:- लोह चुम्बकीय पदार्थ :- ये पदार्थ स्थायी चुम्बकत्त्व प्रदर्शित करते है ये चुम्बकीय क्षेत्र  की और भुत प्रबलता से आकर्षित होते है तथा चुम्बकीय गुण  चुम्बकीय क्षेत्र की अनुपस्थिति में भी प्रदर्शित करते है |
 जैसे :-   Fe , Co , Ni , CrO2   आदि |

4:-  प्रति लोह चुम्बकीय पदार्थ :- इनमे समान संख्या में समांतर तथा विसमांतर इलेक्ट्रान उपस्थित होते है इनमे अयुग्मित इलेक्ट्रान उपस्थित होते है फिर भी इनका चुम्बकीय आघूर्ण शून्य होता है  जैसे :-  MnO ,, MnO2 , MnO3  V2O3   आदि |

5:-  फेरी चुम्बकीय पदार्थ :– इनमे असमान संख्या में समांतर तथा वि समांतर संख्या में इलेक्ट्रान उपोस्थित होते है 
और परिणामी चुम्कीय आघूर्ण शून्य नही होता  जैसे :-  Fe3O4 , MgFe2O4  ZnFe2O4  आदि |

चुम्बकीय पदार्थो पर ताप का प्रभाव :- जब किसी चुम्बकीय पदार्थ को गर्म करते है तो उसका चुम्कीय गुण समाप्त हो जाता है |

                       ……………………CHAPTER END …………………….

some important questions

प्रश्न 19.जब एक ठोस को गर्म किया जाता है तो किस प्रकार का दोष उत्पन्न हो सकता है? इससे कौन-से भौतिक गुण प्रभावित होते हैं और किस प्रकार?
उत्तर:-रिक्तिका दोष; गर्म करने पर ठोस के कुछ परमाणु अथवा आयन जालक स्थल को पूर्णतः छोड़ देते। हैं। परमाणुओं अथवा आयनों के क्रिस्टल को पूर्णतः छोड़ने के कारण पदार्थ का घनत्व कम हो जाता है।

प्रश्न 20.निम्नलिखित किस प्रकार का स्टॉइकियोमीट्री दोष दर्शाते हैं?

  1. ZnS
  2. AgBr

उत्तर:-

  1. फ्रेंकेल दोष
  2. फ्रेंकेल तथा शॉटकी दोष दोनों।

प्रश्न 21.समझाइए कि एक उच्च संयोजी धनायन को अशुद्धि की तरह मिलाने पर आयनिक ठोस में रिक्तिकाएँ किस प्रकार प्रविष्ट होती हैं?
उत्तर:-
विद्युत उदासीनता बनाए रखने के लिए उच्च संयोजकता वाले धनायन द्वारा निम्न संयोजकता वाले दो या अधिक धनायन प्रतिस्थापित होते हैं। अत: कुछ धनायन रिक्तियाँ जनित होती हैं, जैसे- यदि आयनिक ठोस Na+ cl में Sr2+ की अशुद्धि मिलाई जाती है तब दो Na+ जालक बिन्दु रिक्त हो जाते हैं तथा इनमें से एक Sr2+ आयन द्वारा घिर जाती है तथा अन्य रिक्त रहती हैं।

प्रश्न 22.जिन आयनिक ठोसों में धातु आधिक्य दोष के कारण ऋणायनिक रिक्तिका होती हैं, वे रंगीन होते हैं। उपयुक्त उदाहरण की सहायता से समझाइए।
उत्तर:-इसको सोडियम क्लोराइड (Na+ cl) का उदाहरण लेकर समझा सकते हैं। जब इसके क्रिस्टलों को सोडियम वाष्प की उपस्थिति में गर्म करते हैं तब कुछ Cl आयन अपने जालक स्थलों को छोड़कर सोडियम से संयुक्त होकर NaCl बना लेते हैं।

इस अभिक्रिया के होने के लिए सोडियम  परमाणु इलेक्ट्रॉन खोकर Na+ आयन बनाते हैं। ये इलेक्ट्रॉन क्रिस्टल में विसरित होकर Cl आयनों द्वारा जनित ऋणायनिक रिक्तिकाओं को घेर लेते हैं।

क्रिस्टल में अब सोडियम का आधिक्य होता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों द्वारा घेरे गए स्थल F- केन्द्र कहलाते हैं। ये क्रिस्टल को पीला रंग प्रदान करते हैं, क्योंकि वे दृश्य प्रकाश की ऊर्जा का अवशोषण करके उत्तेजित हो जाते हैं।

प्रश्न 23.वर्ग 14 के तत्त्व को n- प्रकार के अर्द्धचालक में उपयुक्त अशुद्धि द्वारा अपमिश्रित करके रूपान्तरित करना है। यह अशुद्धि किस वर्ग से सम्बन्धित होनी चाहिए?
उत्तर:-अशुद्धि वर्ग 15 से सम्बन्धित होनी चाहिए।

प्रश्न 24.किस प्रकार के पदार्थों से अच्छे स्थायी चुम्बक बनाए जा सकते हैं-
लौहचुम्बकीय अथवा फेरीचुम्बकीय? अपने उत्तर का औचित्य बताइए।
उत्तर:-लौहचुम्बकीय पदार्थ श्रेष्ठ स्थायी चुम्बक बनाते हैं क्योंकि इनमें धातु आयन छोटे क्षेत्रों में व्यवस्थित होते हैं, जिन्हें डोमेन कहते हैं। प्रत्येक डोमेन सूक्ष्म चुम्बक के रूप में कार्य करता है।

ये डोमेन अनियमित रूप में व्यवस्थित होते हैं। जब इन पर चुम्बकीय क्षेत्र आरोपित किया जाता है तब वे चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में व्यवस्थित हो जाते हैं तथा प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र बनाते हैं। बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र के हटा लेने पर भी डोमेन व्यवस्थित रहते हैं। इस प्रकार लौहचुम्बकीय पदार्थ स्थायी चुम्बक में परिवर्तित हो जाता है।

the end

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