Class 10th Science Chapter-06 जैव प्रक्रम part – 02 जैव प्रक्रम का ही एक अहम् भाग है | अगर आप इस इकाई अथवा पाठ को अच्छे से अध्ययन करना चाहते है तो हम आपसे यही अनुरोध करते है कि आप इस बहुत बड़ी इकाई को छोटे छोटे part में पढ़े | यही वजह है कि हम आपको यहाँ पर part वाइज नोट्स Provide कर रहे है | इस part में जो भी महत्वपूर्ण हैडिंग है उन्हें जरूर याद करे | क्यूंकि ये ही आपको अच्छे मार्क्स प्राप्त करने में मदद करेंगी |
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What We Learn In This Part
इस भाग में हम बोर्ड में पूछे गये कम से कम 3 से 5 मार्क्स का अध्ययन करेंगे | अत: आप इन्हें ध्यान से पढ़े | अगर आप कुछ समस्या महसूस करते है तो आप हमे सम्पर्क कर सकते हो और आप Ask Question पर क्लिक करके प्रश्न भी पूछ सतके हो | हम आपसे ये गुजारिश करते है कि आप इन महत्वपूर्ण हैडिंग को अवस्य याद करेंगे | क्यूंकि ये वो सभी हैडिंग है जो पिछले बहुत सालो के पेपर में रिपीट हुई है | अगर आप इन्हें याद करके एग्जाम में बैठते है तो आप 90 % से अधिक अंक हासिल कर सकते है |
Class 10th Science Chapter-06 जैव प्रक्रम part – 02 में महत्वपूर्ण Headings निम्नलिखित है | इन्हें अच्छे से याद करे | ये आपको अच्छे अंक दिलाने में मदद करेगी :
- अमीबा में पोषण का सचित्र वर्णन
- मनुष्य में पोषण का सचित्र वर्णन
- श्वसन और इसके प्रकार
- मनुष्य में श्वसन तंत्र का सचित्र वर्णन
अमीबा में पोषण का सचित्र वर्णन
अमीबा में पोषण : अंमीबा एक कोशिकीय जीव है जो अपना भोजन संपूर्ण सतह से लेता है। सर्वप्रथम यह भोजन को देखकर अपनी कोशिकीय सतह को अंगुली जैसी अस्थाई प्रवर्ध सरंचना बनाता हैं। जो भोजन के कण को घेर लेते हैं और संगलित होकर खाद्य रितिका बना लेते हैं। इसी रितिका में पाचन होता है और वह कोशिका द्रव्य में विसरीत हो जाता हैं। बचा हुआ अपच भजन कोशिका की सतह की और गति करता है और शरीर से बाहर निकल जाता है ।
मनुष्य में पोषण का सचित्र वर्णन
मनुष्य में पोषण : मनुष्य में पोषण के लिए सुविकसित पाचन तंत्र होता हैं । जिसमें आहार नाल मुंह से गुदा तक एक लंबी नली है इसके विभिन्न अंगों में भिन्न- भिन्न कार्य होते हैं।
जब हम भोजन ग्रहण करते हैं तो हमारे दांत उसे चबाकर बिल्कुल बारीक कणों में बदल देते हैं। यहां लालाग्रंथियों से लार निकलती है जो भोजन में मिलकर उसे लुगदी जैसा बना देती है।
लार में एक एंजाइम एमीलेस (टायलिन) होता है जो स्टार्च को माल्टोज शर्करा में बदल लेता है। आहार नली में भोजन क्रमाकुंचन गति से आगे बढ़ता है । मुंह से भोजन ऐसोफागस या आहार नाल द्वारा आमाशय में पहुंचता है।
आमाशय में जठर ग्रंथियो से जठर रस एवं आमाशय की दीवारों से श्लेष्मा स्रावित होता है। जठर रस में HCl एवं एक एंजाइम पेप्सिन होता है। HCl भोजन के कठोर भाग को मुलायम करता हैं, हानिकारक सूक्ष्म जीवों को नष्ट करता है एवं अम्लीय माध्यम में तैयार करते हैं जो पेप्सिन की क्रिया में सहायक होता है। पेप्सिन प्रोटीन को पेप्टोिंस में तोड़ देता है। श्लेष्मा आमाशय की दीवारों की अम्ल से सुरक्षा करता है।
अमावशय से भोजन छोटी आंत में प्रवेश करता है जो अवरोधनी पेशी से नियंत्रित होता है। क्षुद्रांत आहार नाल का सबसे लंबा भाग होता है, इसमें कार्बोहाइड्रेट , प्रोटीन एवं वसा का पूर्ण पाचन एवं अवशोषण होता है। यहां यकृत से पित्त रस एवं पित्तलवण मिलते हैं तथा अग्नाशय से अग्नाशय रस मिलते हैं।
पित्त रस भोजन को क्षारीय बनाता है जिससे अग्नाशयी रस उस पर क्रिया कर सके। पित्त लवण वसा की बड़ी बूंदो को छोटी बूंद में तोड़ देता है इसे पयसीकरण कहते हैं। अग्नाशय रस में उपस्थित लाईपेज इस पायसीकृत वसा को वसीय अम्ल और ग्लिसरोल में बदल देता है।
ट्रिप्सिन एंजाइम पेप्टोंस एवं पेप्टाइड को अमीनो अम्ल में बदलते हैं । माल्टेज, सुक्रेज, गैलक्टेज आदि एंजाइम सर्कल को ग्लूकोस, फ्रुक्टोज , गैलक्टोज आदि में बदलकर पाचन को पूरा करते हैं। इस कार्य में क्षुद्रांत की भित्ति से स्रावित आंत्र रस के एंजाइम भी सहायता करते हैं।
आंत्र की भित्ति पर अनेक अंगुली जैसे पर्वध होते हैं जिन्हे रोम (villi) कहते हैं। इनमें रुधिर वाहीकाओं की अधिकता होती है । यह अवशोषण का सर्वाधिक क्षेत्रफल बढ़ा देते हैं और भोजन अवशोषित होकर रुधिर में पहुंच जाता है।
बचा हुआ भोजन बड़ी आंत में पहुंचता है जहां इसमें से जल का अवशोषण होता है । शेष अपच भोजन मलाशय में एकत्रित होता है एवं गुदा द्वारा शरीर से बाहर त्याग दिया जाता है।
श्वसन और इसके प्रकार
श्वसन : पोषण हेतु ली गई कच्ची खाद्य सामग्री का विघटन करने के लिए वातावरण से ऑक्सीजन ली जाती है जो खाद्य पदार्थ का कोशिका में ऑक्सीकरण करके ऊर्जा उत्पन्न करती है तथा बनने वाली कार्बन डाइऑक्साइड को पुन: शरीर से बाहर निकाल देता है, यह प्रक्रम श्वसन कहलाता है। भोजन के ऑक्सीकरण एवं ऊर्जा प्राप्ति हेतु श्वसन आवश्यक होता है।
यह सामान्यतः दो प्रकार का होता है:
1: अवायवीय श्वसन: यीस्ट जैसे जीव किण्वन के दौरान पाईरुवेट को एथेनॉल तथा कार्बन डाइऑक्साइड में तोड़ते हैं। इसमें ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है परंतु ऊर्जा भी इस प्रक्रम में बहुत कम बनती है ।
2: वायवीय श्वसन: इस प्रक्रम में ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। पाइरुवेट माइटोकांड्रिया में जाता है और ऑक्सीजन की उपस्थिति में टूटकर तीन अणु कार्बन डाइऑक्साइड एवं जल बनता है। इसमें बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा बनती है।
कभी-कभी हमारी मांसपेशियों में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। इस स्थिति में एक तीसरा पथ अपनाया जाता है। जिसमें पाइरुवेट लैक्टिक अम्ल बनने के कारण हमारी पेशियां में दर्द शुरू हो जाता है। ऐसा अक्सर दौड़ के बाद होता है।
कोशिकीय श्वसन के दौरान बनने वाली ऊर्जा ATP के रूप में संचित हो जाती है । जब कभी ऊर्जा की आवश्यकता होती है तब ATP टूटकर ऊर्जा उपलब्ध करवाता है।
नोट : जो जीव जल में रहते हैं वो जल में विलय ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं, क्योंकि जल में विलय ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है। अतः इन जीवों की श्वसन दर स्थलीय जंतुओं से अधिक होती है। इसके लिए मछलियों में क्लॉम या गिल पाए जाते हैं।
मनुष्य में श्वसन तंत्र का सचित्र वर्णन
मनुष्य में श्वसन तंत्र : मनुष्य में वायु नासा द्वारा से होकर अंदर प्रवेश करती है। इस मार्ग में बहुत बारीक बाल होते हैं , जो वायु में से धूल एवं अशुद्धियों को पृथक करते हैं। इसमें श्लेष्मा की परत भी होती है जो वायु को नम एवं गर्म बनती है।
यहां से वायु कंठ द्वारा फुफ्फूस में जाती है। कंठ श्वास नली में अनेक C आकर के उपास्थित के छल्ले होते हैं, जो श्वास नली को चिपकने से बचाते हैं। फुफ्फूस में जाकर श्वास नली छोटी-छोटी नलिकाओं में बट जाती है, जो अंत में गुब्बारे जैसी संरचना से जुड़ी होती है,इन्हें कूपिकाएं कहते हैं। इसमें रुधिर कोशिकाओं का जल होता है जहां गैसों का विनिमय होता है।
जब हम श्वास अंदर लेते हैं तो पसलियां ऊपर उठती हैं एवं डायाफ्राम चपटा हो जाता है। जिससे वक्षगुहा का आयतन बढ़ता है। फेफड़ों फैलते हैं और वायु अंदर जाकर कूपिकाओ में भर जाती है। इसी समय रुधिर शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड बाहर छोड़ने के लिए लेकर आता है। अतः कूपीका में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान हो जाता है।
अब डायाफ्राम पुन: ऊपर उठता है, पसलियां नीचे आती हैं। वक्षगुहा का आयतन काम होता है और फेफड़े सिकुड़कर इस कार्बन डाइऑक्साइड युक्त वायु को बाहर निकाल देते हैं। फेफड़ों में सदैव वायु का एक अवशिष्ट आयतन रहता है। यह पूर्णतया खाली नहीं होते।
फुफ्फूस मैं रुधिर द्वारा ली गई ऑक्सीजन, श्वसन वर्णक हिमोग्लोबिन से जुड़ जाती है और शरीर के उन ऊतको तक पहुंच जाती है।जहां ऑक्सीजन कम है यहां ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन से टूटकर कोशिका में चली जाती है और कार्बन डाइऑक्साइड जल में अधिक विलय है तथा इसका परिवहन रुधिर प्लाज्मा द्वारा होता रहता है।