Excellent Shiksha Class-10th,जीव जनन कैसे करते हैं Class 10th Science Chapter-08 जीव जनन कैसे करते हैं part – 02

Class 10th Science Chapter-08 जीव जनन कैसे करते हैं part – 02


Class 10th Science Chapter-08 जीव जनन कैसे करते हैं part – 02

Class 10th Science Chapter-08 जीव जनन कैसे करते हैं part – 02 जीव जनन कैसे करते हैं का ही एक अहम् भाग है | अगर आप इस इकाई अथवा पाठ को अच्छे से अध्ययन करना चाहते है तो हम आपसे यही अनुरोध करते है कि आप इस बहुत बड़ी इकाई को छोटे छोटे part में पढ़े | यही वजह है कि हम आपको यहाँ पर part वाइज नोट्स Provide कर रहे है | इस part में जो भी महत्वपूर्ण हैडिंग है उन्हें जरूर याद करे | क्यूंकि ये ही आपको अच्छे मार्क्स प्राप्त करने में मदद करेंगी |

If you need online tutor or help for any questions like mathematics, physics, chemistry numerical or theory then you can contact me on WhatsApp on +918755084148 or click here. Our team help you all time with cheap and best price. If need it on video our team provide you short video for your problem. So keep in touch of our team specialists.

What We Learn In This Part

इस भाग में हम बोर्ड में पूछे गये कम से कम 3 से 5 मार्क्स का अध्ययन करेंगे | अत: आप इन्हें ध्यान से पढ़े | अगर आप कुछ समस्या महसूस करते है तो आप हमे सम्पर्क कर सकते हो और आप Ask Question पर क्लिक करके प्रश्न भी पूछ सतके हो | हम आपसे ये गुजारिश करते है कि आप इन महत्वपूर्ण हैडिंग को अवस्य याद करेंगे  | क्यूंकि ये वो सभी हैडिंग है जो पिछले बहुत सालो के पेपर में रिपीट हुई है | अगर आप इन्हें याद करके एग्जाम में बैठते है तो आप 90 % से अधिक अंक हासिल कर सकते है |

Class 10th Science Chapter-08 जीव जनन कैसे करते हैं part – 02 में महत्वपूर्ण  Headings निम्नलिखित है | इन्हें अच्छे से याद करे | ये आपको अच्छे अंक दिलाने में मदद करेगी: 

  1. कायिक प्रवर्धन और बीजाणु समासंघ
  2. ऊतक संवर्धन और लैंगिक जनन की परिभाषा
  3. पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन
  4. एकलिंगी और द्विलिंगी या उभयलिंगी पुष्प
  5. पुष्प में नर जनन और मादा जनन अंग
  6. परागण की परिभाषा, स्वपरगण और परपरागण
Class 10th Science Chapter-08 जीव जनन कैसे करते हैं part – 02

कायिक प्रवर्धन और बीजाणु समासंघ

कायिक प्रवर्धन : कुछ पौधों के कई भाग जैसे जड़, तना,  पत्तियां आदि उपयुक्त परिस्थितियों में विकसित होकर एक नया पौधा उत्पन्न कर देते हैं। एकल पौधे इस क्षमता का उपयोग जनन के लिए करते हैं इसका उपयोग कृत्रिम रूप से कायिक प्रवर्धन में भी किया जाता है। जैसे- कलम लगाना, कलम रोपण, कालिका, रोपण, दाब लगना आदि। गन्ना, गुलाब, अंगूर के पौधे इसी प्रकार तैयार किए जाते हैं ।

इसी प्रकार ब्रायोफिलम (पत्थर चट्टा) की पत्तियों के किनारो पर कालिकाएं पाई जाती हैं जो अनुकूल परिस्थितियों में विकसित होकर नया पादप बनती हैं।

कलिकाओ के साथ ब्रायोफिलियम की पत्ती

बीजाणु समासंघ : सरल बहुकोशिकीय जीव एवं कवक में विशिष्ट जनन संरचनाएं पाई जाती हैं। नमी की उपस्थिति में ब्रेड पर धागे जैसा कवक जाल बन जाता है जिसे राइजोपस कहते हैं। इसके ऊर्ध्व तंतुओं पर छोटी गोल संरचनाएं बन जाती है जिन्हें बीजाणु धानी कहते हैं। इनमें अनेक बीजाणु पाए जाते हैं बीजाणु धानी के फटने से बीजाणु चारों ओर बिखर जाते हैं। प्रत्येक बीजाणु के चारों ओर एक मोटी भित्ति होती है जो प्रतिकूल परिस्थितियों में उसकी रक्षा करती है। उपयुक्त परिस्थितियों में बीजाणु वृद्धि करके नया कवक जाल बनाता है।

ऊतक संवर्धन और लैंगिक जनन की परिभाषा

ऊतक संवर्धन : यह एक आधुनिक तकनीक है जिसमें पादप से प्राप्त ऊतक समूह को कृत्रिम संवर्धन माध्यम में रखकर नए पादप तैयार किए जाते हैं। पौधे के शीर्ष के वृद्धि क्षेत्र से ऊतकों को पृथक करके कृत्रिम पोषक माध्यम में रखते हैं जिससे ये कोशिकाएं विभाजित होकर अनेक कोशिकाओं का छोटा समूह बनाती है जिसे कैलस कहते हैं।

कैलस को वृद्धि हार्मोन युक्त अन्य माध्यम में स्थानांतरित करते हैं। जिससे छोटे-छोटे पादप बनते हैं। इन्हें मिट्टी में रोप देते हैं जो वृद्धि करके विकसित होते हैं। इस तकनीक का प्रयोग सजावटी पौधों के संवर्धन में किया जाता है।

लैंगिक जनन : ऐसा जनन जिसमें दो भिन्न-भिन्न जनक को (नर एवं मादा) से प्राप्त कोशिका के निषेचन से नया जीव बनता है उसे लैंगिक जनन कहते हैं।

पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन

पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन : आवृतबीजी पौधों के जनन अंग पुष्प में स्थित होते हैं। एक पुष्प के चार भाग होते हैं :

  1. बाह्यदल
  2. दल (पंखुड़ी)
  3. पुंकेसर
  4. स्त्रीकेसर

इनमें से पुंकेसर एवं स्त्रीकेसर से जनन भाग होते हैं जबकि बाह्यदल एवं दल सहायक भाग होते हैं जो पुष्प की सुरक्षा करते हैं एवं परागण हेतु कीटों को आकर्षित करते हैं।

पुष्प का अनुदैधर्य कट

एकलिंगी और द्विलिंगी या उभयलिंगी पुष्प

एकलिंगी : जब पुष्प में पुंकेसर एवं स्त्रीकेसर दोनों में से केवल एक जननांग उपस्थित हो तो उसे एकलिंगी कहते हैं। जैसे- पपीता, तरबूज आदि ।

द्विलिंगी या उभयलिंगी: जब पुष्प में पुंकेसर एवं स्त्रीकेसर दोनों जननांग उपस्थित हो तो इसे उभयलिंगी या द्विलिंगी कहते हैं। जैसे – गुड़हल सरसों आदि ।

पुष्प में नर जनन और मादा जनन अंग

पुष्प में पुंकेसर नर जनन अंग होता है जिसके धागे जैसी संरचना पुतंतु, परागकोष एवं योजी तीन भाग होते हैं। परागकोष में परागकण बनते हैं ,जो प्राय: पीले रंग के होते हैं।

जबकि स्त्रीकेसर मादा जनन अंग होता है जो पुष्प के मध्य में स्थित होता हैं। इसके तीन भाग होते हैं : 

  1. नीचे का फूला हुआ भाग अंडाशय
  2. मध्य का लंबी वर्तिका
  3. शीर्ष भाग वर्तिकाग्र

वर्तिकाग्र प्राय: चिपचिपा होता है। अंडाशय में बीजांड होते हैं। प्रत्येक बीजांड में एक अंडकोशिका होती है।

पुष्प में नर जनन और मादा जनन अंग

परागण की परिभाषा, स्वपरगण और परपरागण

परागण : परागकणों का परागकोष से वर्तिकाग्र तक पहुंचना परागण कहलाता है।

यदि परागकण इसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुंचते हैं तो इसे स्वपरगण कहते हैं और यदि परागकण उसी जाति के दूसरे पुष्प पर पहुंचते हैं तो इसे परपरागण कहते हैं। यह स्थानांतरण वायु , जल , कीट, पक्षी या जंतुओं द्वारा होता है।

वर्तिकाग्र पर पहुंचने के बाद परागकण अंकुरित होते हैं। इनमें एक परागनली बनती है जो वर्तिका से होती हुई बीजांड तक पहुंचती है। इसमें दो नर युग्मक होते हैं एक नर युग्मक अंड कोशिका से मिलकर युग्मनज (जाईगोट) बनाता है जो भ्रूण में विकसित होता है। दूसरा नर युग्मक द्वितीयक केंद्रक से मिलकर तृतीयक केंद्र बनाता है जो भ्रूणपोष बनाता है। यह क्रिया निषेचन कहलाती है।

निषेचन के बाद युग्मनज से भ्रूण विकसित होता है। बीजांड से एक कठोर आवरण बनाकर यह बीज में बदल जाता है। अंडाशय फल में बदलता है। बाह्य दल, पुंकेसर वर्तिकाग्र सभी मुरझाकर गिर जाते हैं। उपयुक्त परिस्थितियों में बीज अंकुरित होकर एक नया पादप बनाता हैं। अंकुरण के समय भ्रूण से प्राँकुर एवं मूलांकुर बनते हैं जो क्रमशः प्ररोह एवं मूल बनाते हैं बीजपत्र भ्रूण का पोषण देने का कार्य करता है।

अंकुरण

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *