Class 10th Science Chapter-09 अनुवांशिकता एवं जैव विकास part – 04 अनुवांशिकता एवं जैव विकास का ही एक अहम् भाग है | अगर आप इस इकाई अथवा पाठ को अच्छे से अध्ययन करना चाहते है तो हम आपसे यही अनुरोध करते है कि आप इस बहुत बड़ी इकाई को छोटे छोटे part में पढ़े | यही वजह है कि हम आपको यहाँ पर part वाइज नोट्स Provide कर रहे है | इस part में जो भी महत्वपूर्ण हैडिंग है उन्हें जरूर याद करे | क्यूंकि ये ही आपको अच्छे मार्क्स प्राप्त करने में मदद करेंगी |
Table of Contents
ToggleIf you need online tutor or help for any questions like mathematics, physics, chemistry numerical or theory then you can contact me on WhatsApp on +918755084148 or click here. Our team help you all time with cheap and best price. If need it on video our team provide you short video for your problem. So keep in touch of our team specialists.
What We Learn In This Part
इस भाग में हम बोर्ड में पूछे गये कम से कम 3 से 5 मार्क्स का अध्ययन करेंगे | अत: आप इन्हें ध्यान से पढ़े | अगर आप कुछ समस्या महसूस करते है तो आप हमे सम्पर्क कर सकते हो और आप Ask Question पर क्लिक करके प्रश्न भी पूछ सतके हो | हम आपसे ये गुजारिश करते है कि आप इन महत्वपूर्ण हैडिंग को अवस्य याद करेंगे | क्यूंकि ये वो सभी हैडिंग है जो पिछले बहुत सालो के पेपर में रिपीट हुई है | अगर आप इन्हें याद करके एग्जाम में बैठते है तो आप 90 % से अधिक अंक हासिल कर सकते है |
Class 10th Science Chapter-09 अनुवांशिकता एवं जैव विकास part – 04 में महत्वपूर्ण Headings निम्नलिखित है | इन्हें अच्छे से याद करे | ये आपको अच्छे अंक दिलाने में मदद करेगी:
- प्राकृतिक वर्ण द्वारा जैव विकास (ओरिजिन ऑफ स्पीशीज)
- पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति
- विकास एवं वर्गीकरण
- समजात अंग और समवृत्ति अंग
- जीवाश्म और मानव विकास
प्राकृतिक वर्ण द्वारा जैव विकास (ओरिजिन ऑफ स्पीशीज)
प्राकृतिक वर्ण द्वारा जैव विकास (ओरिजिन ऑफ स्पीशीज): वैज्ञानिक डार्विन ने ” प्राकृतिक वरण द्वारा जैव विकास ” का सिद्धांत प्रतिपादित किया और इसे ओरिजन आफ स्पीशीज नामक पुस्तक में प्रकाशित किया ।
इस सिद्धांत के अनुसार जीव बड़ी संख्या में जनन द्वारा संतान उत्पत्ति करते हैं। इन सभी संतानों के मध्य भोजन, आवास, जनन आदि के लिए जीवन संघर्ष होता रहता है। इस जीवन संघर्ष में योग्यतम जीव जीवित रहते हैं उनके अच्छे गुणों का प्रकृति चयन करती है और यह गुण लगातार वंशागत होने के कारण धीरे-धीरे एक नई जाति बन जाती है, परंतु अनुवांशिकी का ज्ञान नहीं होने के कारण डार्विन यह नहीं बता सके कि यह लक्षण वंशागत कैसे होते हैं?
पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति
पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति: डार्विन एवं मेंडल दोनों ही यह बताते हैं कि जीवो में विकास या नहीं जातियां कैसे बनी, परंतु यह नहीं बताते कि पृथ्वी पर सर्वप्रथम जीवन की उत्पत्ति कैसे हुई है?
एक ब्रिटिश वैज्ञानिक एवं भारतीय नागरिक जे.वी.एस हाल्डेन ने बताया कि जीवो की सर्वप्रथम उत्पत्ति उन सरल अकार्बनिक अणुओं से हुई होगी , जो पृथ्वी की उत्पत्ति के समय बने थे। पृथ्वी के उस समय के गर्म एवं नम वातावरण में कुछ जटिल कार्बनिक अणुओं का संश्लेषण हुआ होगा।
जिनसे अन्य रासायनिक संश्लेषण द्वारा जीव की उत्पत्ति हुई होगी। इस सिद्धांत की पुष्टि स्टेनले एल. मिलर एवं हेराल्ड सी उरे द्वारा किए गए प्रयोगों से भी होती है जिसमें उन्होंने प्राथमिक वातावरण जैसी परिस्थितियों में एक कार्बनिक पदार्थ के मध्य विद्युत चिंगारियां उत्पन्न करके सरल कार्बनिक यौगिक को जैसे मेथेन, एमिनो अम्ल आदि का संश्लेषण करके बताया।
if you wants to buy mobile then click here to search best model for you
विकास एवं वर्गीकरण
विकास एवं वर्गीकरण : विभिन्न जीवों का अध्ययन करना बहुत मुश्किल है परंतु यदि इन्हें समानताओं के आधार पर एक समूह में रखकर अध्ययन किया जाए तो यह बहुत सरल हो जाएगा, इसलिए नए-नए लक्षणों के आधार पर एक पदानुक्रम बनाकर हम इनका वर्गीकरण कर सकते हैं।
दो स्पीशीज के मध्य जितने अधिक अभिलक्षण समान होंगे उनका संबंध भी उतना ही निकट होगा तथा उनका उद्भव भी सामान पूर्वजों से हुआ होगा। अतः इनका वर्गीकरण करना अनिवार्य है यह अध्ययन को सरल बनता है।
एक बार इन्हें जरूर पढ़े
-
Class 10th Science Chapter-09 अनुवांशिकता एवं जैव विकास part – 04
-
Class 10th Science Chapter-09 अनुवांशिकता एवं जैव विकास part – 03
-
Class 10th Science Chapter-09 अनुवांशिकता एवं जैव विकास part – 02
-
Class 10th Science Chapter-09 अनुवांशिकता एवं जैव विकास part – 01
-
Class 10th Science Chapter-08 जीव जनन कैसे करते हैं part – 03
समजात अंग और समवृत्ति अंग
समजात अंग: अनेक जीव जो सामान जनक से वंशानुगत हुए हैं उनकी शारीरिक संरचना के अभिलक्षण समान होते हैं , परंतु अपने-अपने पर्यावरण एवं आवश्यकता के अनुसार यह सभी अलग-अलग कार्यों के लिए अनुकूलित हैं , ऐसे अंगों को समजात अंग कहते हैं। जैसे – मेंढक, छिपकली ,पक्षी ,मानव सभी में अग्रपाद की आंतरिक संरचना सामान होती है।
समवृत्ति अंग: ऐसे अंग जो समान कार्य करते हैं परंतु उनकी संरचना एवं उत्पत्ति में बहुत अधिक अंतर होता है इन्हें समरूप या समवृत्ति अंग कहते हैं। जैसे चमगादड़ पक्षी एवं तितलियों के पंख आदि ।
जीवाश्म और मानव विकास
जीवाश्म : जब जीव की मृत्यु हो जाती है और उसके शरीर का अपघटन हो जाता है। इस अवस्था में उस जीव के कुछ भाग वातावरण में चले जाते हैं जिसके कारण उनका अपघटन पूरी तरह नहीं हो पाता। यह भाग उसके शरीर के कठोर भाग होते हैं। जीव के इस प्रकार के अवशेषों को जीवाश्म कहते हैं ।
जैसे कोई मृत कीट , गर्म मिट्टी में सुख कर कठोर हो जाए एवं उसमें किट के शरीर की छाप सुरक्षित रह जाए तो इसे उस कीट का जीवाश्म कहेंगे।
मानव विकास: मानव विकास का अध्ययन भी जैव विकास की विधियों जैसे- उत्खनन, समय निर्धारण, जीवाश्म अध्ययन डीएनए फिंगरप्रिंटिंग आदि से किया जाता है।
इनसे अध्ययन करने के बाद ज्ञात हुआ कि पृथ्वी पर रहने वाले सभी मानव एक ही जाति के सदस्य हैं चाहे उनके रंग, रूप ,आकार आदि में कितना भी अंतर क्यों ना हो।
सभी की उत्पत्ति अफ्रीका महाद्वीप से हुई है। आधुनिक मानव होमोसेपियंस के पूर्वजों को अफ्रीका में ही खोजा जा सकता है।
ऐसा माना जाता है कि कुछ हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज अफ्रीका छोड़कर संसार के विभिन्न भागों में फैल गए और समय अनुसार वहीं पर जाकर के बस गए। वहां के पर्यावरण के अनुसार उनके रंग , रूप, आकार में परिवर्तन हो गया परंतु सभी का मूल डीएनए एक समान है । सभी आपस में जनन कर सकते हैं।
The Chapter End