Excellent Shiksha Class-10th,विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव Class 10th Science Chapter-13 विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव part – 04

Class 10th Science Chapter-13 विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव part – 04


Class 10th Science Chapter-13 विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव part – 04

Class 10th Science Chapter-13 विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव part – 04 विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव  का ही एक अहम् भाग है | अगर आप इस इकाई अथवा पाठ को अच्छे से अध्ययन करना चाहते है तो हम आपसे यही अनुरोध करते है कि आप इस बहुत बड़ी इकाई को छोटे छोटे part में पढ़े | यही वजह है कि हम आपको यहाँ पर part वाइज नोट्स Provide के रहे है | इस part में जो भी महत्वपूर्ण हैडिंग है उन्हें जरूर याद करे | क्यूंकि ये ही आपको अच्छे मार्क्स प्राप्त करने में मदद करेंगी |

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What We Learn In This Part

इस भाग में हम बोर्ड में पूछे गये कम से कम 3 से 5 मार्क्स का अध्ययन करेंगे | अत: आप इन्हें ध्यान से पढ़े | अगर आप कुछ समस्या महसूस करते है तो आप हमे सम्पर्क कर सकते हो और आप Ask Question पर क्लिक करके प्रश भी पूछ सतके हो  | हम आपसे ये गुजारिश करते है कि आप इन महत्व पूर्ण हैडिंग को अवस्य याद करेंगे  | क्यूंकि ये वो सभी हैडिंग है जो पिछले बहुत सालो के पेपर में रिपीट हुई है | अगर आप इन्हें याद करके एग्जाम में बैठते है तो आप 90 % से अधिक अंक हासिल कर सकते है |

Class 10th Science Chapter-13 विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव part – 04 में महत्वपूर्ण  Headings इन्हें अच्छे से याद करे | ये आपको अच्छे अंक दिलाने में मदद करेगी : 

  1. प्रत्यावर्ती धारा की परिभाषा
  2. प्रत्यावर्ती विद्युत धारा जनित्र का सिद्धांत , कार्यविधि एवं उपयोग
  3. दिष्ट धारा की परिभाषा
  4. दिष्ट धारा जनित्र का सिद्धांत , कार्यविधि एवं उपयोग
  5. घरेलू विद्युत परिपथ से सम्बन्धित जानकारी
Class 10th Science Chapter-13 विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव part – 04

प्रत्यावर्ती धारा की परिभाषा

प्रत्यावर्ती धारा : वह विद्युत धारा जिसके परिमाण व दिशा में निश्चित काल अंतराल में आवर्त रूप से परिवर्तन होता रहता है प्रत्यावर्ती विद्युत धारा कहलाती है| यह धारा प्रत्यावर्ती विद्युत जनित्र द्वारा प्राप्त की जाती है|

प्रत्यावर्ती विद्युत धारा जनित्र का सिद्धांत , कार्यविधि एवं उपयोग

प्रत्यावर्ती विद्युत धारा जनित्र : वह जनित्र जिसके द्वारा प्रत्यावर्ती धारा प्राप्त की जाती है प्रत्यावर्ती धारा जनित्र कहलाता है ।

सिद्धांत : प्रत्यावर्ती विद्युत धारा जनित्र विद्युत चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है और यह यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित करता है।

इसमें यांत्रिक ऊर्जा की सहायता से आर्मेचर को शक्तिशाली ध्रुवखंडो के बीच घुमाया जाता है जिसके कारण आर्मेचर से गुजरने वाली चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की संख्या में परिवर्तन होता है और परिवर्तनशील चुंबकीय क्षेत्र के कारण आर्मेचर व संबंध बाह्य परिपथ में प्रत्यावर्ती धारा उत्पन्न होती है।

संरचना : चित्र में प्रत्यावर्ती धारा जनित्र की संरचना को प्रदर्शित किया गया है जिसके तीन प्रमुख भाग होते हैं ।

प्रत्यावर्ती विद्युत धारा जनित्र का सिद्धांत , कार्यविधि एवं उपयोग

1: क्षेत्र चुंबक : इसमें एक शक्तिशाली चुंबक या विद्युत चुंबक प्रबल चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के लिए लगाया जाता है | चित्र में इस चुंबक के ध्रुवखंड N व S प्रदर्शित किए गए हैं ।

2: आर्मेचर : चुंबक के ध्रुव के ठीक मध्य में एक नरम लोहे की छड़ पर लगी तांबे के तार की विद्युतरोधी लेपित कहीं घेरों की आयताकार कुंडली ABCD जिसे आर्मेचर कहते है लगी रहती है| इसे चुंबकीय क्षेत्र में तीव्र गति से सॉफ्ट की सहायता से घुमाया जाता है।

3: सर्पी वलय तथा ब्रश : कुंडली के दोनों सिरों का संबंध दो अलग-अलग तांबे की वलयो R1 R2 से होता है जो कुंडली के अक्ष पर परस्पर बिना स्पर्श के घूमते हैं , यही वलय सर्पी वलय कहलाते हैं |

कार्य विधि : जब प्रत्यावर्ती धारा जनित्र की आर्मेचर को यांत्रिक ऊर्जा के द्वारा उसकी अक्ष पर समरूपी चुंबकीय क्षेत्र के बीच घूर्णन कराते हैं तो उसके फलस्वरुप प्रभावित क्षेत्रफल जिससे चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं गुजरती हैं लगातार परिवर्तित होता रहता है और विद्युत चुंबकीय प्रेरण की क्रिया से आर्मेचर में विभावांतर प्रेरित होने लगता है जिसके कारण बाह्य परिपथ में प्रत्यावर्ती धारा प्रवाहित होने लगती है।

उपयोग : प्रत्यावर्ती धारा जनित्र के अनेकों उपयोग डेली लाइफ में देखे जा सकते हैं जैसे:

  1. प्रत्यावर्ती धारा उत्पन्न करने में
  2. यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने में
  3. वाहनों में डायनेमो के रूप में बैटरी को चार्ज करने के लिए
  4. पवन चक्की में पवन ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिए

दिष्ट धारा की परिभाषा

दिष्ट धारा : दिष्ट धारा वह विद्युत धारा होती है जिसकी दिशा समय के साथ नियत बनी रहती है और परिमाण समय के साथ नियत भी रह सकता है और परिवर्तित भी हो सकता है।
यह सामान्यतः दिष्ट धारा जनित्र द्वारा प्राप्त की जाती है इसके अन्य स्रोत प्राथमिक सेल संचायक सेल व बैटरी भी होते है ।

दिष्ट धारा जनित्र का सिद्धांत , कार्यविधि एवं उपयोग

दिष्ट धारा जनित्र : वह जनित्र जिसके द्वारा दिष्ट धारा प्राप्त की जाती है दिष्ट धारा जनित्र कहलाता है।

सिद्धांत :दिष्ट धारा जनित्र विद्युत चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है और यह यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित करता है।

इसमें यांत्रिक ऊर्जा की सहायता से आर्मेचर को शक्तिशाली ध्रुवखंडो के बीच घुमाया जाता है जिसके कारण आर्मेचर से गुजरने वाली चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की संख्या में परिवर्तन होता है और परिवर्तनशील चुंबकीय क्षेत्र के कारण आर्मेचर व संबंध बाह्य परिपथ में दिष्ट धारा उत्पन्न होती है।

संरचना : चित्र में प्रत्यावर्ती धारा जनित्र की संरचना को प्रदर्शित किया गया है जिसके तीन प्रमुख भाग होते हैं ।

दिष्ट धारा जनित्र का सिद्धांत , कार्यविधि एवं उपयोग

1: क्षेत्र चुंबक : इसमें एक शक्तिशाली चुंबक या विद्युत चुंबक प्रबल चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के लिए लगाया जाता है | चित्र में इस चुंबक के ध्रुवखंड N व S प्रदर्शित किए गए हैं ।

2: आर्मेचर : चुंबक के ध्रुव के ठीक मध्य में एक नरम लोहे की छड़ पर लगी तांबे के तार की विद्युतरोधी लेपित कहीं घेरों की आयताकार कुंडली ABCD जिसे आर्मेचर कहते है लगी रहती है| इसे चुंबकीय क्षेत्र में तीव्र गति से सॉफ्ट की सहायता से घुमाया जाता है।

3: विभक्त वलय तथा ब्रश : इस जनित्र में सर्पी वलय के स्थान पर विभक्त वलय का उपयोग किया जाता है | जो द्विक परिवर्तक की भांति कार्य करता है जैसे विद्युत मोटर में , इस अवस्था में एक ब्रश सदैव ही उस भुजा के सम्पर्क में रहता है जो चुम्बकीय क्षेत्र में उपर की ओर गति करती है, जबकि दूसरा ब्रश सदैव निचे की ओर गति करने वाली भुजा के सम्पर्क में रहता है जिसके कारण एक दिशिक प्रवाह की दिष्ट धारा बाह्य परिपथ में प्राप्त होती है | 

कार्य विधि : जब दिष्ट धारा जनित्र की आर्मेचर को यांत्रिक ऊर्जा के द्वारा उसकी अक्ष पर समरूपी चुंबकीय क्षेत्र के बीच घूर्णन कराते हैं तो उसके फलस्वरुप प्रभावित क्षेत्रफल जिससे चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं गुजरती हैं लगातार परिवर्तित होता रहता है और विद्युत चुंबकीय प्रेरण की क्रिया से आर्मेचर में विभावांतर प्रेरित होने लगता है जिसके कारण बाह्य परिपथ में दिष्ट धारा प्रवाहित होने लगती है।

उपयोग : प्रत्यावर्ती धारा जनित्र के अनेकों उपयोग डेली लाइफ में देखे जा सकते हैं जैसे:

  1. दिष्ट धारा उत्पन्न करने में
  2. यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने में
  3. वाहनों में डायनेमो के रूप में बैटरी को चार्ज करने के लिए
  4. पवन चक्की में पवन ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिए

घरेलू विद्युत परिपथ से सम्बन्धित जानकारी

सामान्यत: घरेलू विद्युत परिपथ की व्यवस्था समांतर क्रम में की जाती है | एसा इसलिए किया जाता है क्योंकि एक समय में केवल एक ही वस्तू को चलाया जा सके | 

लघु पथन : विद्युत युक्त तार और उदासीन तार का आपस में मिल जाना लघु पथन कहलाता है | 

अतिभारण : केवल एक ही सोकित से कई विद्युत साधित्रों को जोड़ देने पर विद्युत तारो का अनुमतांक बढ़ जाता है , जिसके कारण परिपथ या उसका प्रभावित भाग गर्म हो जाता है और कभी कभी आग पकड़ लेता है | यह अवस्था अतिभारण कहलाती है | 

The Chapter End 

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