Class 10th Science Chapter-16 प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन part – 02 प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन का ही एक अहम् भाग है | अगर आप इस इकाई अथवा पाठ को अच्छे से अध्ययन करना चाहते है तो हम आपसे यही अनुरोध करते है कि आप इस बहुत बड़ी इकाई को छोटे छोटे part में पढ़े | यही वजह है कि हम आपको यहाँ पर part वाइज नोट्स Provide के रहे है | इस part में जो भी महत्वपूर्ण हैडिंग है उन्हें जरूर याद करे | क्यूंकि ये ही आपको अच्छे मार्क्स प्राप्त करने में मदद करेंगी |
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What We Learn In This Part
इस भाग में हम बोर्ड में पूछे गये कम से कम 3 से 5 मार्क्स का अध्ययन करेंगे | अत: आप इन्हें ध्यान से पढ़े | अगर आप कुछ समस्या महसूस करते है तो आप हमे सम्पर्क कर सकते हो और आप Ask Question पर क्लिक करके प्रश भी पूछ सतके हो | हम आपसे ये गुजारिश करते है कि आप इन महत्व पूर्ण हैडिंग को अवस्य याद करेंगे | क्यूंकि ये वो सभी हैडिंग है जो पिछले बहुत सालो के पेपर में रिपीट हुई है | अगर आप इन्हें याद करके एग्जाम में बैठते है तो आप 90 % से अधिक अंक हासिल कर सकते है |
Class 10th Science Chapter-16 प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन part – 02 में महत्वपूर्ण Headings इन्हें अच्छे से याद करे | ये आपको अच्छे अंक दिलाने में मदद करेगी :
- हमें वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण क्यों करना चाहिए?
- संपोषित प्रबंधन और चिपको आंदोलन
- जल, बांध और इसके लाभ और समस्याएँ
- कोयला और पेट्रोलियम
हमें वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण क्यों करना चाहिए?
हमें वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण क्यों करना चाहिए?
वन एवं वन्य जीव पृथ्वी पर अति मूल्यवान जैव विविधता को बनाए रखते हैं । जैव विविधता में क्षति से पारिस्थितिक असंतुलन पैदा होता है जिससे प्राकृतिक प्रकोपों का सामना करना पड़ सकता है । अतः हमें वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण आवश्यक रूप से करना चाहिए।
संपोषित प्रबंधन और चिपको आंदोलन
संपोषित प्रबंधन : संपोषित प्रबंधन से तात्पर्य है कि स्थानीय लोगों की भागीदारी से ऐसा प्रबंधन जिसमें वन संसाधनों के समुचित उपयोग के लिए प्राथमिकता तय की जाए तथा वर्षों के उपयोग के साथ-साथ उनका पूरण भी समयबद्ध तरीके से होता रहे । वनों की समृद्धि एवं विकास भी सभी दावेदारों के हितों को ध्यान में रखकर सामान वितरण की नीति पर आधारित हो ।
चिपको आंदोलन : यह आंदोलन 1970 के प्रारंभिक दशक में हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य स्थित गढ़वाल के रेनी नामक गांव में घटित हुआ था। स्थानीय निवासियों का उस ठेकेदार के साथ विवाद उत्पन्न हुआ। जिसने उन लोगों के वन क्षेत्र की लकड़ी काटने का ठेका लिया था ।
एक निश्चित दिन ठेकेदार के आदमी वृक्ष काटने के लिए आए। उस दिन उस गांव के निवासी पुरुष वहां पर उपस्थित नहीं थे, किंतु महिलाओं ने निडर होकर वृक्षों को अपनी बाहों में भर लिया और ठेकेदार के आदमियों को वृक्ष काटने से रोक दिया। आखिरकार ठेकेदार को अपना यह काम बंद करना पड़ा।
चिपको आंदोलन बहुत तेजी से अनेक समुदायों में फैलता गया और इसे जनसंचार से भी पूर्ण योगदान मिला जिसके कारण सरकार को सोचने के लिए मजबूर होना पड़ा और उन्हें स्थानीय लोगों की सहभागिता को महत्व देना पडा।
जल, बांध और इसके लाभ और समस्याएँ
सभी के लिए जल और इसकी उपलब्धता: जल की कमी वाले क्षेत्र और अत्यंत निर्धनता वाले क्षेत्र सामान्यतः एक जैसे ही होते हैं। भारतवर्ष में वर्षा मुख्य मानसून पर निर्भर करती है इसलिए वर्ष की अवधि कुछ महीनो तक ही सीमित रहती है। इसके कारण फसलों में पानी की कमी होती है जिसके कारण उपवास में बहुतायत मात्रा में कमी आती है।
इस समस्या का निदान करने के लिए सरकार ने विशाल बंद नेहरू का निर्माण किया जिसके कारण सिंचाई करके स्थानीय समस्याओं का निदान किया जा सकता है।
बांध : बड़े बालों में जल का संग्रहण पर्याप्त मात्रा में किया जा सकता है जिसका उपयोग सिंचाई के साथ-साथ विद्युत उत्पादन के लिए भी किया जा सकता है बांध से निकलने वाली नेहरू जल की बड़ी मात्रा को दूर स्थान पर ले जाती है जिसकी सहायता से जल की समस्या का निदान किया जा सकता है।
बड़े बांधों के निर्माण के विरोध का कारण: बांध के निर्माण से जल संग्रहण करके विद्युत का उत्पादन किया जा सकता है और पर्याप्त मात्रा में जल संग्रहण किया जा सकता है परंतु इसके कारण बहुत सारी समस्याएं उत्पन्न होती हैं जिनमें से कुछ निम्न प्रकार है:
1: सामाजिक समस्याएं : बड़े बांधों के निर्माण से बड़ी संख्या में किसान और आदिवासी विस्थापित होते हैं और उन्हें मुआवजा नहीं मिल पाता है और ना ही उनके पुनर्वास की समुचित व्यवस्था होती है । जो कुछ उन्हें मिलता है वह क्षतिपूर्ति के लिए काफी कम होता है।
2: आर्थिक समस्याएं: बांध निर्माण में जनता का बहुत अधिक धन लग जाता है जबकि इस अनुपात में आपेक्षिक लाभ नहीं मिल पाता है और प्रभावित लोग आर्थिक रूप से पिछड़ते चले जाते हैं।
3: पर्यावरणीय समस्याएं: बड़े बांध निर्माण से बड़े स्तर पर वनों का विनाश होता है तथा जैव विविधता को क्षति पहुंचती है । जिसके कारण प्राकृतिक आपदाओं बाढ़ सूखा आदि का खतरा बढ़ जाता है ।
कोयला और पेट्रोलियम
कोयला और पेट्रोलियम : कोयला एवं पेट्रोलियम के रूप में जीवाश्म ईंधन ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। कोयला एवं पेट्रोलियम लाखों वर्षों पूर्व जैव मात्रा के हुए अपघटन से प्राप्त होते हैं। अत्यंत सावधानी पूर्वक उपयोग करने पर भी यह स्रोत भविष्य में समाप्त हो जाएंगे।
विभिन्न आकलनों से अनुमान लगाया जा रहा है कि हमारे देश में पेट्रोलियम के संसाधन लगभग 40 वर्षों में तथा कोयला अगले 200 वर्षों तक ही उपलब्ध रह पाएगा ।
कोयला एवं पेट्रोलियम जैव मात्रा से बनते हैं । जिनमें कार्बन के अतिरिक्त हाइड्रोजन, नाइट्रोजन एवं सल्फर होते हैं । जीवाश्म ईंधन को जब पर्याप्त वायु में जलाते हैं तो कार्बन डाइऑक्साइड के स्थान पर कार्बन मोनोऑक्साइड बनती है।
कोयला एवं पेट्रोलियम का उपयोग हमारी मशीन की दक्षता पर निर्भर करता है । कोयले का बड़े पैमाने पर उपयोग ताप बिजली घरों में किया जाता है । बाह्य दहन इंजन में भी कोयले के दहन से पानी की भांप बनाकर काम में ली जाती है । पेट्रोलियम उत्पाद जैसे डीजल एवं पेट्रोल का यातायात के विभिन्न संसाधनों जैसे मोटर वाहन जालियां में किया जाता है । यातायात के साधनों में सामान्यत: अतिरिक्त दहन इंजन का उपयोग भी होता है।
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